Tuesday, Nov 26, 2024 | Last Update : 09:46 PM IST
राफेल एक लड़ाकू विमान है। इसकी ऊंचाई 5.30 मीटर और लंबाई 15.30 मीटर है। इसकी रफ्तार 1.8 मैक है जो कि लगभग 2020 किलोमीटर प्रतिघंटा के हिसाब से है। इससकी रफ्तार इतनी अधिक है कि एक धंटे में ये दिल्ली से पाकिस्तान के क्वेटा जाकर वापस आ सकती है। राफेल लड़ाकू विमान को भारतीय सेना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मिराज 2000 का एडवांस वर्जन कहा जा सकता है। भारतीय वायुसेना के पास अभी तक कुल 51 मिराज 2000 लड़ाकू विमान उपलब्ध हैं।
जाने क्या है राफेल लड़ाकू विमान समझौता
भारत की पूर्व केन्द्रीय यूपीए सरकार के कार्यकाल में साल 2010 में फ्रांस से राफेल समझौते की शुरुआत हुई थी। साल 2014 में एनडीए की सरकार आई जिसके बाद सितंबर साल 2016 में भारत ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों का समझौता हुआ। यह समझौता लगभग 59 हजार करोड़ रुपये में किया गया। यहां बता दें कि एक राफेल लड़ाकू विमान की कीमत लगभग 1600 करोड़ रुपये बताई गई है।
राफेल समझौते में समस्या
रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी द्वारा मीडिया को दी गई जानकारी के मुताबिक भारत को फ्रांस से 126 राफेल विमानों का समझौता हुआ था। यूपीए के शासन के समय में समझौते में तय हुआ था कि भारत राफेल के 18 विमान पूरे खरीदेगा और 108 विमान बेंगलौर को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एसेम्बल किये जाएंगे। लेकिन यह समझौता पूरा नहीं हो पाया। बता दें कि इस दौरान राफएल की कीमत 526 करोड़ रुपये थी। वहीं एनडीए की सरकार के आने के बाद इस राफेल को 1570 करोड़ रुपये की लागत से खरीदा जा रहा है। इसकी जानकारी रहुल गांधी ने मीडिया को संबोधित करते हुए दी थी। बता दें कि इस डील को कांग्रेस ने 428 करोड़ रुपये तय किया था।
वहीं एनडीए सरकार ने इस समझौते में बदलाव करते हुए सभी राफेल को सीधे फ्रांस से लिये जाने के आदेश दिए। उन्होने कहा कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से राफेल को नहीं बनवाया जाएगा। इस मामले में अनिल अंबानी का नाम भी सामने आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट में इस बात का जिक्र करते हुए लिखा है कि मार्च 2015 में अंबानी ने रिलायंस डिफेंस का रजिस्ट्रेशन करवाया। इस रेजिस्ट्रेशन के मात्र दो हफ्ते बाद ही यूपीए सरकार की 600 करोड़ की राफेल डील को 1500 करोड़ की डील में बदल दिया गया। जिसके कारण भारत को राफेल को खरीदने में अन्य देशओं के मुकाबले अधिक कीमत चुकानी पड़ी। बता दें कि कांग्रेस लगातार डील की रकम को सार्वजनिक करने की मांग कर रही है वहीं एनडीए सरकार दोनों देशों के बीच हुए सुरक्षा समझौते की गोपनीयता का हवाला दे रही है।
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