बजट सत्र में मोदी सरकार एस्टेट ड्यूटी या इन्हेरिटेंस टैक्स कर सकती है लागू

Sunday, Nov 24, 2024 | Last Update : 01:54 AM IST

बजट सत्र में मोदी सरकार एस्टेट ड्यूटी या इन्हेरिटेंस टैक्स कर सकती है लागू

केंद्र की मोदी सरकार पांच जुलाई को बजट पेश करेगी और इस बीच ये कयास लागाया जा रहा है कि एस्टेट ड्यूटी या इन्हेरिटेंस टैक्स एक बार फिर से लागू किए जा सकते है। वहीं विपक्ष इस तरह के टैक्स का विरोध कर रही है। विपक्ष का कहना है कि सरकार को टैक्स कलेक्शन बढ़ाने के लिए नए विकल्पों पर विचार करना चाहिये ना कि नए टैक्स लगाकर।
Jul 2, 2019, 3:32 pm ISTNationAazad Staff
Pm Modi
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केंद्र की मोदी सरकार में लंबे समय से एस्टेट टैक्स की वापसी की चर्चा चल रही है। सरकार इसे उत्तराधिकार कर यानी कि इनहेरिटेंस टैक्स के नाम से लागू करने की योजना बना रही है। इस साल बजट में एस्टेट ड्यूटी या इन्हेरिटेंस टैक्स फिर से लगाया जा सकता है। विपक्ष इस पर एतराज़ कर रहा है जबकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे सामाजिक विषमता घटेगी। सरकार के सामने पैसा जुटाने की चुनौती है।

सोमवार को आए आंकड़े बता रहे हैं कि दो महीनों में जीएसटी कलेक्शन औसतन करीब १४,००० करोड़ महीने कम हो गया। वित्त मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक अप्रैल २०१९ में कुलजीएसटी  कलेक्शन १,१३,८६५ करोड़ था जो जबकि मई  २०१९ में १, ०००,२८९  हो गया और जून २०१९ में घटकर ९९९३९ करोड़ रह गया है। माना जा रहा है कि नए निवेश के लिए सरकार एस्टेट ड्यूटी या इन्हेरिटेंस टैक्स पर मनथन कर रही है।

इनहेरिटेंस टैक्स क्या है -

इनहेरिटेंस टैक्स (Inheritence Tax)  पुरखों की संपत्ति पर लगने वाला टैक्स है जिसे उसके उत्तराधिकारी से वसूला जाता है। भारत में साल १९५३ से लेकर १९८६ तक यह एस्टेट ड्यूटी के नाम से लागू था। बाद में राजीव गांधी सरकार ने इसे बंद कर दिया। अब फिर से भारत में इस कर के लागू होने की चर्चाएं तेज हैं। हालांकि, इससे आम आदमी पर कोई असर नहीं होगा।

एस्टेट ड्यूटी क्या है -

भारत में साल  १९३५ में पहली बार संपदा शुल्क यानी कि एस्टेट ड्यूटी को लागू किया गया था। यह इंग्लैंड में लागू संपदा शुल्क पर आधारित था। इसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को मिलने वाली मुख्य संपत्ति पर वसूला जाता था। मुख्य संपत्ति मृत व्यक्ति की वह संपत्ति होती थी जिसे उसके जीवित रहते बाजार में बेचा जा सकता हो। यह कर भारत में साल १९८६ तक लागू रहा। राजीव गांधी की सरकार ने इस कर को खत्म कर दिया था।

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