Sunday, Nov 24, 2024 | Last Update : 01:33 PM IST
फूलनदेवी एक ऐसी महिला जो चंबल के बीहड़ों में सबसे ख़तरनाक डाकू मानी जाती थीं। 1980 के दशक में आई फिल्म शोले के गब्बर से लोगों को उतना खोफ नहीं होगा जीतना फूलन देवी का नाम सुनते ही लोग अपने घरों में बंद हो जाया करते थे।
फूलन देवी के बारे में कहा जता है कि वो बहुत ही कठोर दिल की महिला थी जानकारों की माने तो उनके कठोरता का कारण समय व परिस्थितियां थी जिन्होने उन्हे ऐसा बनने पर मजबूर किया।फूलनदेवी के बारे में कहा जाता है कि उन्होने उत्तरप्रदेश के बहमई में 22 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा कर मौत के घाट उतार दिया था।
जीवन परिचय -
फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के ‘जालौन’ के एक गाँव में 1963 में हुआ था। फूलन देवी का विवाह 10 साल की छोटी उम्र में ही कर दिया गया था। अधेड़ उम्र के पति ने शादी की पहली रात से उसके साथ दरिंदगी शुरू कर दी, जो लंबे समय तक चली। उस आदमी ने फूलन से बलात्कार किया और फिर ये रोज का सिलसिला बन गया। जिसकी वजह से उसकी सेहत बिगड़ गई और उसे मायके आना पड़ा, उधर पति ने दूसरी शादी कर ली। फिर किस्मत ने एक और करवट ली।
16 साल की उम्र में डाकुओं ने फूलनदेवी का अपहरण कर लिया। फूलनदेवी का बलात्कार किया गया उनका शोषण किया गया। बताया जाता है कि ठाकुरों ने दो सप्ताह से अधिक समय तक फूलन को नग्न अवस्था में रखा। फूलन एक बंधक थी। उसके साथ रोज सामूहिक बलात्कार किया जाता। तब तक जब तक वह बेहोश नहीं हो जाती। जिस समय ये बर्बरता हुई फूलन केवल 18 साल की थी।
फूलन देवी जब डाकूओं की चेगूल से आजाद हुई तो उन्हे घर समाज ने भी अपनाने से इंनकार कर दिया। और फिर यहीं से शुरु हुआ फूलन देवी का डांकू बनने का सफर। 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों की हत्या कर दी थी।
इस घटना ने फूलन देवी का नाम बच्चे की ज़ुबान पर ला दिया था। फूलन देवी का कहना था उन्होंने ये हत्याएं बदला लेने के लिए की थीं।उनका कहना था कि ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था जिसका बदला लेने के लिए ही उन्होंने ये हत्याएं कीं।
फूलन को 11 साल जेल में रहना पड़ा. मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उन पर लगे सारे आरोप वापस लेने का फैसला किया। राजनीतिक रूप से ये बड़ा फैसला था। 1994 में फूलन जेल से छूट गईं।उम्मेद सिंह से उनकी शादी हो गई।
जेल से निकलने के बाद शुरु हुआ राजनीति का सफर -
फूलन देवी के 1994 में जेल से रिहा होने के राजनीति का सफर शुरु हुआ। फूलनदेवी ने 1996 में वे 11वीं लोकसभा के लिए मिर्ज़ापुर(उत्तरप्रदेश) से चुनाव लड़ा और सांसद चुनी गईं। हालांकि ये सफर फूलन देवी के लिए इतना आसान भी नहीं था। समाजवादी पार्टी ने जब उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया तो कई लोगों ने इसका विरोध किया कई लोगों ने ये तक कहा कि एक डाकू को संसद में पहुँचाने का रास्ता दिखाया जा रहा है। बहरहाल हर विरोद को दर्किनार करते हुए उन्होने जीत हासिल की ।
हालांकि फूलन ने 1998 में एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में खड़ी हुई लेकिन इस बार उन्हे हार का सामना करना बड़ा। हालांकि 13वीं लोकसभा के चुनाव में फूलन देवी ने एक बार फिर से चुनाव लड़ा और इस बार उन्हे सफलता हासिल हुई। फूलन देवी मिर्जापूर से दो बार सांसद चुनी गई। 25 जुलाई 2001 को उनकी हत्या कर दी गई।
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