Wednesday, Dec 25, 2024 | Last Update : 01:12 PM IST
पहचान :- पहली महिला आई पी एस (१९७२) किरण बेदी के रूप मे भी जानी जाती रही है | विभिन पदों पर रहते हुये समाज कोई नई दिशा दी और सुधार के सकरात्मक कदम उठने मे सहयोग दिया|
उपलब्धि :- कई अवार्ड झोली मे , गलैत्री अवार्ड से लेकर मैग से से अवार्ड तक किरण को प्राप्त हो चुके है|
फुर्सत के दिन पढने और लिखने के है अद्यात्मिक किताबो या फिर दर्शन लुभाता है|
प्रभावित :-उन सभी से जिन्होने ज़िन्दगी जीने की नई दिशा दी | मसलन गाँधी और विवाकानंद|
पसंदीदा पर्यटन स्थल :-वह हर जगहे जहा कुदरत है पहाड़ और समुन्द्र सब अच्छा लगता है|
प्यार :- बेटी से और अपने काम से |
नफरत :- झूठ और बनावटी पन से |
रंग :- सभी पसंद है कोई रंग बुरा नही होता है|
फिल्म :- हाल मे पसंद आई पिपली लाइव |
स्टाइल मंत्र :- आरामदायक परिधान | ऐसा स्टाइल जिसे मेनटेन करना मुशकिल न हो |
किताबे आत्मिक अनुभूतियो का मंच | इसलिये लगातार लिख रही है किसी न किसी विषये पर |
२६ जनवरी १९७५ का दिन हर बार की तरह गद्तंत्र दिवस की भावना और भव्यता से जगमग था | राजपथ पर परेड की शुरुवात हो चुकी थी एक के बाद एक हुकदिया दर्शको के सामने मार्च पास करते हुई गुजर रही थी | यदि कुछ अलग था तो सिर्फ इतना की इस बार मार्च पास मे दिल्ली पुलिस के दस्ते का नैत्र्वा एक महिला कर रही थी | दुबली ,पतली कद की लेकिन विशवास और हिम्मत से भरपूर | उस समय की प्रधानमंत्री इन्द्र गाँधी के सामने साकार हो रही थी बदलते भारत मे सुदुरुण होती इस्त्री की तस्वीर | उन्होने अपने सहायको को इशारा किया , कौन है यह लड़की और अगली हे सुबह नाश्ते पर इंद्रा के सामने भारत की पहली महिला आई पी एस किरण बेदी मोजूद थी | जोश और कुछ कर गुजरने के जज्बे से किरण बेदी|
धीरे धीरे इस नाम से लोग और जायदा वाकिब होने लोगे | १९७९ मे धार्मिक उन्माद से ग्रस्त सिख समुदाये के कुछ लोगो ने निरंकारी सिखों दवारा आयोजित संत समागम के विरोध मे जुलूस निकला उसे नियंत्रित करने की जिमेदारी किरण को मिली लेकिन जुलूस धीरे धीरे अनियंत्रित धार्मिक आक्रामकता और उन्माद का रूप ले रहा त ए| ऐसे वक़्त मे उनके साथ कड़ी सिपाही भी अनियंत्रित सिथति को देखकर भागने की फ़िराक मे थे की उन्होने देखा किरण मोर्चे पर पूरी हिम्मत से डटी हुई है | फिर क्या था एक लड़की के भीतर के जोश और ने सिपाहीयो को भी मुकाबला करने की हिम्मत डै दी बाद मे किरण बेदी को इसके लिये प्रेसिडेंट गैलैटरी अवार्ड प्रदान किया गया|
न डर न कुर्सी का संकोच ट्रैफिक कमिश्नर, दिल्ली की जिमेदारियो को उन्होने इतनी गंभीरता से निभाया की ट्रैफिक नियमों का पालन न करने वाले लोग सही हो गये इसी पद पर रहते हुई उन्होने तत्कालीन प्रधान मंत्री इंद्रा गाँधी की गाड़ी को भी क्रेन से हटाने मे कोई संकोच न किया | वजह एक ही थी ट्रैफिक नियमों का उलंघन यही से वो लोगो के लिये बन गई क्रेन बेदी|
भ्रस्ताचार के दीमक को सामोल मिटाना चाहती है | उदयपर्क के हाई टैक मे जब किरण बेदी से मिलने गये तो उनके जीवन से जुडे ऐसे कई पहलुओ से परिचित हुई|
छुई मुई कभी नहीं | छोटी थी तभी पिता प्रकाश लाल ने मन मे यह बात अच्छे से बिठाई थी की खुद को कभी किसी से कम मत समझना | एक ही मंत्र था पड़ो-लिखो और समझना | एक ही मंत्र था , पड़ो लिखो और आगे बड़ो | येही कारण था की परिवार मे चाहे वह रही हो या उनकी बहने ,सबने आम लडकियों के मुकाबले अपने लिये अलग राह चुनी | बचपन को याद करती हुई किरण कहती है ,' घर मे तीन-चार चीजो पर खास ध्यान दिया जाता था | पढाई, खेल अनुशासन और बेहतर खान-पान | अनुशासन इस कदर हावी था की दोपहर मे हम घर पर नही टेनिस कोर्ट मे हो पिता जी कहते थे चुनोती से घबरओ नही मुकाबला करो देखा जाये तो हमारी परवरिश ही अलग स्थान बनाया फिर चाहे टेनिस हो या फिर चाहे पुलिस की नोकरी या पढाई की दुनिया , वह हर जगह टॉप रही /लेकिन काररीएर के रूप मे पुलिस क्यों खेल क्यों नही | सच यह है की मे टेनिस मे हे नही लेकिन मेरा मकसद सिर्फ चेम्पिओं बनना हे नही था सिस्टम मे भागीदारी निभाना भी था | बचपन से ही सोचा था की सिस्टम मे जाना है |इसलिये आई ए एस की तैयारी मे लग गई और जब आई पी एस के लिये चुनी गई तो लगा येही सही मंच है|
सोच का विकास जरुरी :- आप जैसा सोचेगे , वैसा ही करेगी नकरात्मक सोच का असर सीधे आपके काम पर पड़ता है इसलिये क्यों न हमेशा सकरात्मक और बेहतर सोचा जाये " मै अपना सारा समय सुन्योजित तरीके से इस्तेमाल करती हू |अधिकतर समय पढने मै बिताती हू आज से नही पहले से ही ये सोच रही हू की खूब पड़ो ताकि सोच की खिडकिया बंद न रहे यह भी हमारे अभिभावकों की हे डैन थी की वह हमेशा कहते थे बड़ा सोचो, बेहतर सोच|
किरण बेदी के पति ब्रज बेदी अमृतसर मै समाजसेवा के काम मै सक्रीय है और बेटी किरण के नवज्योति और कई प्रोग्रामो से जुडी हुई है लेकिन इस परिवार मै किसी को किसी से कोई सिकायत नही कोई अपेक्षा भी नही|
बैसाखी नही बल चाहेये :- वह इस बात को जोर देती है की भीतर की योगता को विकसित करो ,आसमान खुद ब खुद नज़र आ जायेगा |जो जाया काबिल हो वह हे चुना जाये सिस्टम ऐसा हे होना चाहेये |लडकियों को आगे बदने के लिये बैसाखी नही बल चाहेये | शारीरिक और मानसिक बल जिस दिन यह बल उनमे आ जायेगा वह खुद को कमजोर नही महसूस नही करेगी | हर स्त्री के भीतर एक चिंगारी है एक प्रतिभा है पर उसे समैझ्ने वाला और उसे बहार लाने वाला और कोई नही येही आत्मिक बल है |
पुलिस और गाँधी वादी :- पुलिस की छवि इसलिये ख़राब हो चली है क्योकि पुलिस वेही पुराने तरीके से काम कर रही है | काम पर धयान नही इसलिये पुलिस सिस्टम को दुरुस्त करने की जरोरत नही |किरण कहती है की सबसे पहले हमे यह समझना होगा की पुलिस का मतलब क्या है यहाँ डंडे से नही गाँधी वादी तरीके से बेहतर काम हो सकता है आर्थिक तबके के कमजोर लोगो को मुख्यधारा मै जोडने जैसे एक नही कई अभियान है उमीदोके इसी निरंतर बदती काफिले का नाम हे तो स्वाभिमान की किरण है |
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