Sumitranandan Pant (सुमित्रानंदन पंत)

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Sumitranandan Pant (सुमित्रानंदन पंत)

Sumitranandan Pant (सुमित्रानंदन पंत),मित्रानंदन पंत का जन्म उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसौनी गाँव मे २० मई सन १९०० ई. मे हुआ था |
Sep 26, 2010, 6:03 pm ISTIndiansSarita Pant
Sumitranandan Pant
  Sumitranandan Pant

 सुमित्रानंदन पंत का जन्म उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसौनी गाँव मे २० मई  सन १९०० ई. मे हुआ था |जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया | उनकी प्राम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा जिले  मे  हुई  | १९१९ मे उन्होने उच्च शिक्षा के लिये म्योर सेंट्रल कॉलेज  इलाहाबाद मे प्रवेश लिया उन्ही दिनों गाँधी जी के नेतृत्व मे चल रहे असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और पढाई छोड़ दी | उन्होंने प्रगतिशील साहित्य के प्रचार-प्रशार के लिए रूपाम नामक पत्रिका का प्रकाशन कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई |

सन १९५० से १९५७ तक पंत जी आकाशवाणी हिंदी के परामर्शदाता रहे | उत्कृष्ट साहित्य साधना के लिए उन्हें "सोवियत" भूमि ने नेहरु पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया | सन १९७१ में भारत सरकार ने 'पदम् भूषण' की उपाधि से विभूषित किया | सन १९७७ में पंत जी का निधन हो गया |

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ
सुमित्रानंदन पंत संवेदनशील, मानवतावादी और प्रकृति प्रेमी कवि है | प्रकृति चित्रण के क्षेत्र में वे अपना सनी नहीं रखते उनकी और रचनाओ में वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्य, उतरा, स्वर्ण किरण, कला और बुढा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि प्रमुख कृतिया है |

सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली
सुमित्रा नन्द पंत ने अपनी रचानो के लिए साहित्यिक खडी बोली को अपनाया है | उनकी भाषा सरल स्वाभाविक एवं भावनाकुल है | उन्होंने तत्सम शब्दों की बाहुबल के साथ साथ अरबी, ग्रीक, फारसी, अंग्रेजी भाषाओ के शब्दों का भी प्रयोग किया है |

"उदहारण- ग्राम श्री कविता में इसकी झलक देखने को मिल सकती है | ग्राम श्री का अर्थ है गाँव की लक्ष्मी, गाँव की सम्पन्नता कवि इस कविता में भारतीय गाँव की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करता है | भारतीय गाँव में हरी-भरी लहलहाती फसले, फल-फूलो से भरे पेड़ नदी-तट की बालू आदि कवि को मुग्ध कर देती है यहाँ गंगा के रेत का मनोहारी वर्णन किया जा रहा है |

बालू के सापों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती सुन्दर लगती संपत छाई तट पर तरबूजो के खेती; आंगुली की कंघी से बगुले कलंगी सवारते है कोई तिरते जल में सुरखाव, पुलित पर मगरोठी रहती सोई | बालू पर बने निशाने को " बालू के सांप कहकर संबोधित किया है | गंगा की रेती जो सूर्य का प्रकाश पड़ने के कारण सतरंगी बनकर चमक रही है वह बालू के सांपो से अंकित है उसके चारो और सरपट की बनी झाड़ियो और तट पर तरबूजो के खेत बड़े सुन्दर लगते है | जल में अपने एक पैर को उठा उठा कर सर खुजलाते बगुले ऐसे दिखाई पड़ते है जैसे बालो में खंघी कर रहे हो | गंगा के उस प्रवाहमान जल में कही सुर्खन तैर रहे है तो कही किनारे पर मगरोठी (एक विशेष चिड़िया) ऊँघती हुई भी दिखाई पड़ रही है |

दूसरी कविता
हसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोये,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्न में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन |

कवि बसंत के आगमन पर हरियाली को अपने में समेटे इस मादक मौसम और गाँव के संपूर्ण दृश्य कैसा लगता है इसका वृणन किया है की रात की भीगी अंधियारी में सुख के कारण उत्पन्न हुए आलस से युक्त हरीतिमा को धारण करने वाली फसले जैसे रात और तारो के सपनो में खोई हुई सी सो रही है और पन्ने जैसी हरित छवि वाली इन फसलो को धारण करने वाली धरती का पन्ने (मरकत) की डिब्बे जैसा है |
"इस मरकत डिब्बे जैसे गाँव के ऊपर नीला आकाश ऐसे छाया है जैसे 'नीलम' का आच्छादन हो | अनुपमेय शोभा युक्त गाँव की यह स्निग्ध छटा इस बसंती मौसम में अपनी शोभा से मन को हर लेने वाली है |
यहाँ पर कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे' सा खुला कहा है | पन्ना नाम के हरे कीमती रत्न को मरकत कहा जाता है | गाँव हरा-भरा है पन्ने के रंग का है और पन्ने के सामान ही बहुमूल्य भी है डिब्बे में बहुत सी अन्य वस्तुए होती है गाँव रूपी पन्ने की डिब्बी में अनेक वस्तुए सजी है | कविता में सुन्दर प्राकृतिक चित्रण है | बसंत ऋतू में गाँव की सम्पनता चित्रित की गई है|

हिंदी साहित्य में सुमित्रा नंदन पंत का नाम बहुत ही आदर से लिया जाएगा |

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