Monday, Dec 23, 2024 | Last Update : 02:41 AM IST
दुनिया भर में हर साल 15 मार्च विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रुप में मनाया जाता है।उपभोक्ता के हक की आवाज़ उठाने और उन्हें अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए जागरुक बनाने के लिए मनाया जाता है। इस अधिनियम की शुरुआत सन 1983 कंज्यूमर्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने की थी। इस अधिनियम को पारित करने का उद्देश दुनिया भर के सभी उपभोक्ता यह जानें कि बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए उनके क्या हक हैं। सभी देशों की सरकारें उपभोक्ताओं के अधिकारों का ख्याल रखें। बता दें कि अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’
उपभोक्ता संरक्षण नियम को 1987 में संशोधित किया गया और 5 मार्च 2004 को इसे अधिसूचित किया गया था। बता दें कि भारत में 24 दिसम्बर को इसे राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत में इस अधिनियम में साल दर साल कई बदलाव होते रहे। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को अधिकाधिक कार्यरत और प्रयोजनपूर्ण बनाने के लिए दिसम्बर 2002 में एक व्यापक संशोधन लाया गया और 15 मार्च 2003 से लागू किया गया।
उपभोक्ता अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं के अधिकार-
उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें।
इस अधिनिय को तीन स्तर में बाटा गया है-
इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है - ज़िला स्तर पर ज़िला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग।
इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं - पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार।
ज़िला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करो़ड रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करो़ड रुपये से ज़्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
इस अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। इसके साथ ही उपभोक्ताओं को अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। यह सेवा पूरी पूरी तरह से नि:शुल्क है।
बता दें कि इस अधिनियम के तहत अगर कोई शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर ज़िला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे. उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं. ज़िला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है. इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है. प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी. अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो ज़िला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या क़ीमत वापस करे या नुक़सान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि. अगर शिकायतकर्ता ज़िला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिला़फ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है। इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है।
मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की क़ैद या 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सज़ाएं हो सकती हैं।
...