Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 11:10 PM IST
अक्षय कुमार की बहुचर्चित फिल्म पैड मैन की कहानी यू तो असल जिंदगी पर आधारित है। फिल्म में अक्षय जिस व्यक्ती का किरदार निभा रहे है उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी है। आज हम आपको असल जिंदगी के पैडमैन के उन दिलचस्प पहलूओं से रुबरु कराएंगे जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। तो आएये जानते है असल जिंदगी के पेडमैन अरुणाचलम मुरुगअनंतम से।
अरुणाचलम मुरुगअनंतम का जन्म 1962 में तमिलनाडु के कोयंबटूर के एक गरीब परिवार में हुआ था। छोटी उम्र में ही इनके पिता का देहांत हो गया था। परिवार का खर्चा चलाने के लिए इनकी मां सिलाई का काम किया करती थी। परिवार की स्थिती खराब होने के कारण अरुणाचलम मुरुगअनंतम को चौदह साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था। घर का खर्चा चलाने के लिए इन्होने खेतों और फैक्टरियों में मजदूरी का भी काम किया।
अरुणाचलम मुरुगअनंतम की जिंदगी पैडमैन से कैस जुड़ी इसका सिलसिला शादी के बाद शुरु हुआ एक दिन शांति (अरुणाचलम मुरुगअनंतम की पत्नी) अपने पीछे कुछ छिपाए हुए थी। उन्होने पूछा कि क्या छिपा रही हो, तो उसने जवाब दिया, यह तुम्हारे काम की चीज नहीं है।
अरुणाचलम मुरुगअनंतम पीछे पड़ गए, कुछ ही देर में उन्हे मालूम हुआ कि वह उनसे अपने मासिक धर्म के लिए प्रयोग किए जाने वाला कपड़ा छिपा रही थी। उन्होने उससे पूछा तुम यह गंदा कपड़ा क्यों इस्तेमाल करती हो? उसने जवाब दिया कि मैं ही नहीं, बल्कि परिवार की दूसरी महिलाएं भी यही कपड़ा प्रयोग करती हैं।
कारण दोबारा पूछने पर उसका जवाब था, मुझे सैनेटरी पैड के बारे में पता है, पर घर की दूसरी जरूरतें पूरी करनी है इसलिए पैसे बचा रही हूं। मैं हैरान था कि इतनी जरूरी चीज का पैसा दूसरे मद में क्यों खर्च किया जा रहा है। मेरी नई-नई शादी हुई थी, सो मैंने सोचा कि पत्नी को कुछ उपहार दिया जाए। फिर क्या, पत्नी को इंप्रेस करने के लिए उन्होने अपनी पतनी को सैनेटरी नैपकिन गिफ्ट किया।
मन में जिज्ञासा जगी, तो उन्होने खोल के देखा उसे देखने के बाद वो आश्चर्यचकित हो गए कि चंद पैसों के कच्चे माल से बने इस पैड को बहुराष्ट्रीय कंपनियां सैकड़ों गुना कीमत में बेच रही हैं। यहीं से उनके भीतर इस ख्याल ने जन्म ले लिया कि मुझे एक ऐसा देसी पैड तैयार करना है, जो आम भारतीय महिलाओं की पहुंच में हो।
इसके बाद उन्होने पैड बनाने शुरू किए इसका इस्तमाल करने के लिए सबसे पहले अपनी पत्नी और बहन को दिया दोनों ने इसका इस्तमाल करने से मना कर दिया। इसके साथ ही दोनों ने अरुणाचलम का साथ देने से भी साफ इनकार कर दिया।उन्हें इस काम के लिए कोई वॉलंटियर भी नहीं मिली तो उन्होंने सैनिटरी पैड का परीक्षण खुद पर ही करना शुरू कर दिया। हालांकि गांव के लोगों ने उनका विरोध किया।
अरुणाचलम को यह बात जानने में दो साल का समय लग गया कि कॉमर्शियल पैड सेल्यूलोज से बने होते हैं। लेकिन इसे बनाने वाली मशीन बहुत महंगी थी इसलिए उन्होंने खुद मशीन बनाने का इरादा बनाया और 65,000 रु. की मशीन तैयार कर दी। उन्होंने इसका इस्तेमाल पैड बनाने के लिए किया।
अरुणाचलम के इस प्रयोग को दुनियाभर में पहचाना गया और कई औरतों की जिंदगी को बदलने में इसने अहम भूमिका निभाई।उनसे कई अन्य उद्यमियों ने भी प्रेरणा ली. उनकी ये मिनी मशीन 29 में से 23 राज्यों में लगाई गई हैं और ये पैड बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड की एक तिहाई कीमत पर ल जाते हैं। वे अपने इस प्रोजेक्ट को 106 देशों तक ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।
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