हिंदी के प्रसिद्ध महाकवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला, जाने उनके जीवन की कुछ अहम बाते…..

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हिंदी के प्रसिद्ध महाकवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला, जाने उनके जीवन की कुछ अहम बाते…..

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला' की कविताएं अंत को अस्वीकार करने वाली कविताएं हैं।
Feb 16, 2018, 3:19 pm ISTShould KnowAazad Staff
Suryakant Tripathi 'Nirala
  Suryakant Tripathi 'Nirala

हिंदी के छायावादी युग के महाकवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला' का जन्म आज ही के दिन यानी 16 फरवरी 1896 में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। निराला का निजी जीवन जितना अधिक विषमय रहा, साहित्यिक कृतियां उतनी ही अमृतमयी साबित हुईं।

 

निराला ने हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने हिंदी संस्कृत और बांग्ला में भी अध्ययन किया। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की उम्र महज तीन वर्ष थी, जब उनकी मां का निधन हो गया और बाद में जब वे बीस वर्ष की आयु के हुए तो उनके पिता का देहांत हो गया।

निराला ने कई कविताएं, उपन्यास, निबंध संग्रह आदि की रचनाएं की। उनके काव्यसंग्रह हैं: अनामिका1923, परिमल1930, गीतिका1936, द्वितीय अनामिका1938, तुलसीदास1938, कुकुरमुत्ता1942, अणिमा1943, बेला1946, नये पत्ते1946, अर्चना1950, आराधना1953, गीत कुंज1954 । सांध्यकाकली, अपरा और रागविराग में उनकी चुनी हुई रचनाएं हैं ।

निराला ने हिंदी के विष को पिया और उसे बदले में अमृत का वरदान दिया. 1923 ईस्वी में जब कलकत्ता से ‘मतवाला’ का प्रकाशन हुआ, उस समय (रामविलास शर्मा के अनुसार) निराला ने उसके कवर पेज के लिए दो पंक्तियां लिखी थीं:

अमिय गरल शशि सीकर रविकर राग-विराग भरा प्याला पीते हैं, जो साधक उनका प्यारा है यह मतवाला शर्मा आगे लिखते हैं: ‘निराला ने सोचा था, ‘मतवाला ऐसा पत्र होगा जिसमें जीवन, मृत्यु, अमृत और विष और राग और विराग-संसार के इस सनातन द्वंद्व पर रचनाएं प्रकाशित होंगीं. किंतु न ‘मतवाला’ इन पंक्तियों को सार्थक करता था, न हिंदी का कोई और पत्र. इन पंक्तियों के योग्य थी केवल निराला की कविता जिसमें एक ओर राग-रंजित धरती है- रंग गई पग-पग धन्य धरा- तो दूसरी ओर विराग का अंधकारमय आकाश है: है अमानिशा उगलता गगन घन अंधकार.’ इसलिए वे निराला की कविताओं में एक तरफ आनंद का अमृत तो दूसरी तरफ वेदना का विष होने की बात करते हैं। उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर, 1961 को इलाहाबाद में हुई।

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला की कविताओं में से एक पंक्ती आपके समक्ष साझा की है-

तुम्हें खोजता था मैं, पा नहीं सका, हवा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,

कितने चुम्बन दिये, मेरे मानव-मनोविनोद में नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे छबि के निर्झर झरे नयनों से,

शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले, मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा जब थका, रुका ।

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