Sunday, Dec 22, 2024 | Last Update : 09:30 PM IST
भारत के इतिहास में आज का दिन एक खास महत्व रखता है। आज के ही दिन एक ऐसे महान पुरुष का जन्म हुए था जिन्होने हमारे संविधान को एक नई पहचान दी, जाति प्रथा व ऊंच नीच, भेदभाव जैसी कुरीतियों के प्रती आवज़ को बुलंद किया। हमारे देश में निम्न जातियों को लेकर कितने भेदभाव व कुरितियां है इसे हर कोई जानता है। पहले निम्न जाती के होने के कारण लोगों को कई धार्मिक स्थलों पर प्रवेश की अनुमती नहीं हुआ करती थी। निम्न जाती के होने के कारण उनका हमेशा शोषण किया जाता था।
बहरहाल निम्न जाती व वर्गों को देश में उनका हक दिलाने के लिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने संविधान की एक नई छवी की शुरुआत की। जिसके तहत हर समुदाय के लोगों को कानून के दायरे में एक ही नजरीये से एक बराबर का देखा जाने लगा।
जाती व भेदभाव का शिकार हुए थे बाबा भीमराव अंबेडकर-
14 अप्रैल 1891 में भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में मऊ, मध्य प्रदेश में हुआ था। छोटी जाती का होने के कारण उनके साथ भेदभआव किया जाता था।
विद्यालय मे उन्हें सबसे अलग बैठना पड़ता था। प्यास लगने पर अलग रखे घड़े से पानी पीना पड़ता था। एक बार वे बैलगाड़ी में बैठ गये, तो उन्हें धक्का देकर उतार दिया गया। वह संस्कृत पढ़ना चाहते थे, पर कोई पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ। एक बार वर्षा में वह एक घर की दीवार से लगकर बौछार से स्वयं को बचाने लगे, तो मकान मालकिन ने उन्हें कीचड़ में धकेल दिया।
भेदभाव के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त की-
इतने भेदभाव सहकर भी भीमराव ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। गरीबी के कारण उनकी अधिकांश पढ़ाई मिट्टी के तेल की ढिबरी के प्रकाश में हुई। यद्यपि सतारा के उनके अध्यापक श्री अम्बा वाडेकर, श्री पेंडसे तथा मुम्बई के कृष्णाजी केलुस्कर ने उन्हें भरपूर सहयोग भी दिया। जब वे महाराजा बड़ोदरा के सैनिक सचिव के नाते काम करते थे, तो चपरासी उन्हें फाइलें फंेक कर देता था।
1924 में भीमराव ने निर्धन और निर्बलों के उत्थान हेतु ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ बनायी और संघर्ष का रास्ता अपनाया। 1926 में महाड़ के चावदार तालाब से यह संघर्ष प्रारम्भ हुआ। जिस तालाब से पशु भी पानी पी सकते थे, उससे पानी लेने की अछूत वर्गाें को मनाही थी। डा0 आंबेडकर ने इसके लिए संघर्ष किया और उन्हें सफलता मिली। उन्होंने अनेक पुस्तकंे लिखीं तथा ‘मूकनायक’ नामक पाक्षिक पत्र भी निकाला।
मंदिरों में वैश व शूद्रों के प्रवेश पर लगी रोक के खिलाफ की बगावत -
1930 में नासिक के कालाराम मन्दिर में प्रवेश को लेकर उन्होंने सत्याग्रह एवं संघर्ष किया। उन्होंने पूछा कि यदि भगवान सबके हैं, तो उनके मन्दिर में कुछ लोगों को प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता ? अछूत वर्गों के अधिकारों के लिए उन्होंने कई बार कांग्रेस तथा ब्रिटिश शासन से संघर्ष किया।
इस कारण हुई थी मृत्यु-
948 से अम्बेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। राजनीतिक मुद्दों से परेशान अम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गया और 1955 के दौरान किए गए लगातार काम ने उन्हें तोड़ कर रख दिया।