जलियांवाला बाग हत्याकांड जहां निहत्थे भारतीयों पर चलाई गई थी अंधाधुंध गोलियां

Sunday, Nov 03, 2024 | Last Update : 07:02 PM IST


जलियांवाला बाग हत्याकांड जहां निहत्थे भारतीयों पर चलाई गई थी अंधाधुंध गोलियां

इतिहास के पन्नों में १३ अप्रैल का दिन काला अध्याय माना जाता है। जलियांवाला बाग नरसंहार में आज ही के दिन निहत्थे भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया गया था। वहीं दूसरी तरफ आज का दिन सिख समुदाय के लिए बेहद खास माना गया है। आज ही के दिन साल १६९९ को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन फसल पकने की खुशी में बैसाखी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। 
Apr 13, 2019, 10:53 am ISTShould KnowAazad Staff
Jallianwala Bagh Hatyakand
  Jallianwala Bagh Hatyakand

इतिहास के पन्नों में १३ अप्रैल का दिन बेहद ही दुखद घटना से जुड़ा हुआ है।इस दिन को भारतीय इतिहास में काला  अध्याय माना गया है। १३ अप्रैल १९१९ को जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट के विरोध में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। जिसके लिए हजारों की संख्या में भारतीय वहां एक जुट हुए थे।इस दौरा अंग्रेजी हुकुमत के अफसर जनरल डायर ने हजारों भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरु कर दी। डायर करीब १०० सिपाहियों के सीथ बाग के गेट तक पहुंचा। उसके करीब ५० सिपाहियों के पास बंदूकें थीं। वहां पहुंचकर बिना किसी चेतावनी के उसने गोलियां चलवानी शुरु कर दी।

जिस जगह जनसभा का आयोजन किया जा रहा था उस बगीचे से बाहर निकलने वाले रास्तों को बंद कर दिया गया था और अचानक मासूम निहत्थे भारतीयों पर गोलियों की बौछार की जाने लगी। इनमें महिलाए और बच्चे भी शामिल थे। गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। गोलीबारी के बाद कुएं से २०० से ज्यादा शव बरामद हुए थे।

इतना ही नहीं निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए। इस घटना के प्रतिघात स्वरूप सरदार उधमसिंह ने १३ मार्च १९४० को लंदन के कैक्सटन हॉल में इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल ओ ड्वायर को गोली चला के मार डाला। उन्हें ३१ जुलाई १९४० को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

माना जाता है कि इस हत्याकांड में बच्चों, बूढों समेत ४०० से अधिक लोगों की मौत हुई थी।  हालांकि इस हत्याकांड में २०० लोगों के घायल होने और ३७९ लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते हैं।

लेकिन अनाधिकारिक आंकड़ों की माने तो इस नरसंहार में १००० से ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात कहीं गई है। इस घटना  ने भारतीयों पर अपनी ऐसी छाप छोड़ी की उन्होंने अंग्रेजों के किलाफ बगावत कर दी और यहीं से ब्रिटिश शासन के अंत का आरंभ शुरु हो गया।

१९५१ में संसद ने जलियांवाला बाग को राष्ट्रीय स्मारक के रुप में घोषित किया। इस स्मारक का प्रबंधन जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक न्यास (जेबीएनएमटी) करता है। बहरहाल इस हत्याकांड को आज १०० साल पूरे हो गए है। लेकिन इस हत्याकांड का दर्द आज भी भारतीय के सीने में है।

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