Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 06:17 PM IST
नालन्दा विश्वविद्यालय विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना पांचवी सदी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की थी। नालंदा विश्वविद्यालय के मठों का निर्माण प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से हुआ था। यहाँ की सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है।
सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहाँ सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया। इस प्रकार यह बारहवीं शताब्दी तक सफलतापूर्वक संचालित होता रहा, परंतु तुर्क आक्रमण में तबाह होने के बाद यह दोबारा स्थापित नहीं हो पाया। इस स्थान पर हुई खुदाई के बाद इसकी संरचनाओं का पता लगा। 14 हेक्टयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले।
इस विश्वविद्यालय में गौतम बुद्ध के कई मंदिर देखे जा सकते है। जिसमें कई छोटे-बड़े स्तूप हैं तथा प्रत्येक में भगवान बुद्घ की मूर्ति स्थापित है।
यहाँ अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आते थे। भारत के ज्ञात इतिहास का यह सर्वप्राचीन विश्वविद्यालय था। इस विश्वविद्यालय में राजा और रंक सभी विद्यार्थियों के साथ समान व्यवहार होता था। जातक कथाओं से यह भी ज्ञात होता है कि तक्षशिला में 'धनुर्वेद' तथा 'वैद्यक' तथा अन्य विद्याओं की ऊंची शिक्षा दी जाती थी।
नालंदा में एक वक्त में 2 हज़ार से ज्यादा शिक्षक और दस हज़ार छात्र हुआ करते थे। 2006 में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कालम ने नालंदा यूनिवर्सिटी को दोबारा जीवन देने का सुझाव सामने रखा। बिहार सरकार ने राजगीर में यूनिवर्सिटी के लिए 450 एकड़ ज़मीन खरीदी।नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की अगुवाई में 2007 में परियोजना की निगरानी के लिए टीम का गठन किया गया।
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