Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 11:06 PM IST
हुमायूँ की मृत्यु 1556 में हुई और हाजी बेगम के नाम से जानी जाने वाली उनकी विधवा हमीदा बानू बेगम की मृत्यु के 9 वर्ष बाद, सन् 1565 में हुमायूँ मकबरे का निर्माण शुरू करवाया गया जो 1572 में पूरा हुआ। हूमायूँ का मकबरा बनाने में लाल पत्थरो का इस्तमाल किया गया है। मुगल सामराज्य का ये पहला ऐसा मकबरा है जिसे बनाने में लाल पत्थरों का इस्तमाल किया गया था। हुमायूँ का मकबरा पहला सबसे बड़ा और शाही मकबरा था। ये मकबरा इस्लामी वास्तुकला से प्रेरित था।
सन 1993 में इस मकबरे को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया था और तभी से यह मकबरा पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।
हुमायूँ का मकबरा 9 हजार 290 वर्ग मीटर मे फैली हुई है और तकरीबन 38 मीटर ऊंची है। इसके सबसे बड़े चेम्बर की ऊंचाई किसी सात मंजीला इमारत जीतनी है। बाहर से गुम्बद का विशाल दायरा 68 मीटर है। इसके ऊपर लगा कलश 6 मीटर ऊंचा है जिसे बनाने में 300 कीलोग्राम तांबा और दस कीलोग्राम सोना लगा है।
इसमें चार बाग कहे जाने वाले बगीचे 20 एकड़ में फैले हुए है। जो आज की तुलना में क्रिकट के चार मैदानों के बरारबर है।ये उद्यान भारत ही नहीं वरन दक्षिण एशिया में अपनी प्रकार के पहले उदाहरण थे। ये उच्च श्रेणी की ज्यामिती के उदाहरण हैं। जन्नत रूपी उद्यान चार दीवारी के भीतर बना है। ये उद्यान चार भागों में पैदल पथों (खियाबान) और दो विभाजक केन्द्रीय जल नालिकाओं द्वारा बंटा हुआ है। ये इस्लाम के जन्नत के बाग में बहने वाली चार नदियों के परिचायक हैं।
यमुना का तट निजामुद्दीन दरगाह के निकट होने के कारण ही हुमायूँ के मकबरे को यमुना तट पर ही बनाया गया था और वही मकबरे के पास दिल्ली के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की भी कब्र है। बाद में मुगल इतिहास के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर यहाँ शरणार्थी बनकर आये थे, 1857 की क्रांति के समय, अपनी तीन बेगमो के साथ कप्तान होड्सों ने उन्हें पकड़ लिया था और रंगून में कैद कर के रखा था. फिर बाद में गुलाम वंश के काल में यह ज़मीन नसीरुद्दीन (1268-1287) के बेटे सुल्तान केकुबाद की राजधानी में “किलोखेरी किला” के नाम से जानी जाती थी।
हुमायूँ के इस मकबरे के अन्दर बहोत से छोटे-छोटे स्मारक भी बने हुए है, जैसे ही हम मकबरे के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते है वैसे ही हमें रास्ते में बने छोटे-छोटे स्मारक दिखाई देते है।
मकबरा फारसी वास्तु कला तथा भारतीय परंपराओं का मिश्रण है- आले, कॉरीडोर और ऊंचे दोहरे गुम्बद फारसी वास्तु-कला के उदाहरण हैं और छतरियां भारतीय वास्तु-कला के नमूने हैं जिससे दूर से यह पिरामिड की भाँति दिखाई देता है।
यमुना का तट निजामुद्दीन दरगाह के निकट होने के कारण ही हुमायूँ के मकबरे को यमुना तट पर ही बनाया गया था और वही मकबरे के पास दिल्ली के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की भी कब्र है. बाद में मुगल इतिहास के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर यहाँ शरणार्थी बनकर आये थे।
बता दें कि गुलाम वंश के काल में यह ज़मीन नसीरुद्दीन (1268-1287) के बेटे सुल्तान केकुबाद की राजधानी में “किलोखेरी किला” के नाम से जानी जाती थी। बहरहाल बता दें कि यहां हुमायूँ के कब्र के साथ साथ और भी कई लोगों के कब्र मौजूद है। हुमायूँ की कब्र को गुम्बद के बीचों बीच दफनाया गया है। हुमायूँ के मकबरे में एक खूफिया रास्ता भी मौजूद है जिसे अब सरकारी दस्तावेजों के आधार पर बंद कर दिया गया है।
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