राहुल साक्रत्ययान (Rahul Sankrityayan)

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राहुल साक्रत्ययान (Rahul Sankrityayan)

Mahapandit Rahul Sankrityayan ,Travel literature (यात्रा वृतांत), राहुल साक्रत्ययान का जन्म सन १८९३ जिला आजमगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) मे हुआ | उनका मूल नाम केदार पाण्डेय था | उनकी शिक्षा काशी , आगरा और लाहौर मे हुई |सन १९३० मे उन्होने श्रीलंका जाकर बुद्ध धर्म ग्रहण कर लिया | तबसे उनका नाम राहुल साक्रत्ययान हो गया | साहित्य की दुनिया मे इन्हें महापंडित भी कहते है |
Aug 20, 2010, 9:46 am ISTIndiansSarita Pant
Mahapandit Rahul Sankrityayan
  Mahapandit Rahul Sankrityayan

राहुल साक्रत्ययान का जन्म सन १८९३ जिला आजमगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) मे हुआ | उनका मूल नाम केदार पाण्डेय था | उनकी शिक्षा काशी , आगरा और लाहौर मे हुई |सन १९३० मे उन्होने श्रीलंका जाकर बुद्ध धर्म ग्रहण कर लिया | तबसे उनका नाम राहुल साक्रत्ययान हो गया | साहित्य की दुनिया मे इन्हें महापंडित भी कहते है |
 
राहुल जी पालि, प्राकृत, तिब्बयती, चीनी , अपभ्रंश ,जापानी ,रुसी सहित अनेक भाषाओ के जानकार थे | १९६३ मे उनका देहांत हो गया |

साहित्य रचनाये :- भागो नही  दुनिया को बदलो ,मेरी जीवन - यात्रा ( छै भाग) दर्शन - दिग्दर्शन , बाईसवी सदी दिमागी गुलामी ,घुमक्कड़ शास्त्र उनकी प्रमुख कृतिया है , वोलगा से गंगा उनकी प्रमुख कृतिया  है| राहुल जी द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या १५० है |

साहित्य विषैतये : - राहुल  स्वभाव से घुमक्कड़   थे | उन्होंने मंजिल के स्थान पर यात्रा को ही घुमक्कड़  का उदेश बताया | घुमक्कड़ी से  मनोरंजन ,ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों  की जानकारी के साथ साथ भाषा एवं संस्कृति का भी आदान प्रधान होता है | राहुल वर्णन की कला मे निपुण थे | रोचकता उनके लेखन का प्रमुख गुण है |
भाषा शैली :- राहुल जी की भाषा सरल सहज एवं प्रभावात्मक शब्दों से परिपूर्ण है | उन्होने  हिंदी के अलावा उर्दू और अंग्रजी के शब्दों का भी प्रयोग किया है |

राहुल जी पहली  तिब्बत यात्रा लहासा की ओर :-
राहुल जी ने तिब्बत यात्रा सन १९२९-१९३० मे नेपाल के रास्ते से की थी |उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नही थी | इसलिये उन्होने ये यात्रा एक भिखमंगे के वेश मे की थी | इससे  तिब्बत की राजधानी लयसा की और जाने वाले दुर्गम रास्तो का वर्णन उन्होने बहुत रोचक शैली मे किया है | इस यात्रा वृतान्त मे उन्होने तिब्बती समाज के बारे मे जान कारी तो दी ही है  साथ ही उन्होने राजधानी लहासा की और जाने वाले खतरनाक रास्तो का बखान बहुत ही रोमांचकारी
ढंग से क्या है | यात्रा के दौरान  आपको बहुत कठिनाइयों  से गुजरना पढ़ा  १६ - १७ हजार फीट ऊचे पर्वतो को लाघना पड़ा  | ऐसे स्थानों से जाना पड़ा |जहाँ  डाकू बिना बात  खून कर देते थे |

तिब्बत के विचित्र मौसम को झेलना पड़ा  जहाँ  चेहरे  पर यदि धूप पड़ रही है तो झेलना कठिन होता है और उसी समय कंधे पर छाया हो तो वह बर्फ़ हो रहा होता है |तिब्बत पहाढ़ी और पठारी भू - भाग है | यहाँ पहुचना बहुत कठिनं है | यदपि इसकी सीमा भारत से लगी है | पूरे भारत से यहाँ के लिये गिने चुने  मार्ग ही है | वे मार्ग गहरी घाटियों , पर्वतो, बीहड़ दररो होकर गुजरते है | पहाड़ो  पर बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती  है | रास्ते चढ़ाई और उतराई वाले है | रास्ते चढ़ाई और उतराई वाले है | सारी भूमि जमींदारो  मे बंटी है जमींदारो बेगार के मजदूर से काम करवाते है |

वर्तमान स्थिति मे आज तिब्बत चीनी गणतंत्र  का एक प्रान्त  है |यहाँ जाने के लिये सर्वप्रथम पासपोर्ट और विजा की आवश्यकता होती है | राहुल जी को पैदल यात्रा करनी पड़ी  थी | आज पैदल भाग बहुत कम है | भारत से तीन प्रमुख सडक  मार्गो से भी जाया जा सकता है - लद्दाख से हिमाचल मे सतलुज की घाटी से उतरांचल  मे लिपु लेख से वायु मार्ग से भी जाया जा सकता है |

कहानिया
सतमी के बच्चे, सतमी  के  बच्चे -1935, वोल्गा से गंगा  - 1944, बहुरंगी  मधुपुरी  - 1953
कनैला  की  कथा  - 1955-56 |

उपन्यास
बीसवीं  सदी  - 1923 ,जीने  के  लिए  - 1940, सिंह  सेनापथी  - 1944, जय  यौधेय  - 1944
भागो  नहीं , दुनिया  को  बदलो  - 1944, मधुर  स्वप्न  - 1949, राजस्थानी  रनिवास  - 1953
विस्मृत  यात्री  - 1954, दिवोदास  - 1960, विस्मृति  के  गर्भ  में |
कुछ और उपन्यास
बीसवीं  सदी  - 1923, जीने  के  लिए  - 1940, सिंह  सेनापथी  - 1944 ,जय  यौधेय  - 1944
भागो  नहीं , दुनिया  को  बदलो  - 1944, मधुर  स्वप्न  - 1949, राजस्थानी  रनिवास  - 1953
विस्मृत  यात्री  - 1954, दिवोदास  - 1960, विस्मृति  के  गर्भ  में |

Biography
सरदार पृथ्वी  सिंह  -1955, नए  भारत  के  नए  नेता   - 1942, बचपन  की  स्मृतियाँ  - 1953,अतीत   से  वर्त्तमान  (Vol I) - 1953, स्टालिन  -1954, लेनिन  - 1954, कार्ल  मार्क्स  - 1954 ,मो -त्से -तुंग  - 1954, घुमाक्कर  स्वामी  - 1956, मेरे  असहयोग  के  साथी  - 1956,जिनका  मैं  क्रिताजना  - 1956, वीर  चन्द्रसिंह  गढ़वाली  - 1956, सिम्हाला  घुमाक्कर  जैवर्धन  - 1960, कप्तान  लाल  - 1961 ,सिंहल  के  वीर  पुरुष  - 1961, महामानव  बुध  - 1956 |

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