विकासशील देशों में कृषि श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 फीसदी

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विकासशील देशों में कृषि श्रम शक्ति में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 फीसदी

स्कूल आॅफ डेवलप्मेंट स्टडीज़, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने कोअलिशन आॅफ फूड एण्ड न्यूट्रीशन सिक्योरिटी, नई दिल्ली की मदद से ‘वूमैन एम्पावरमेंट- इम्पैक्ट आॅन मेटरनल एंड चाइल्ड न्यट्रीशन’ विषय पर आयोजित किया नेशनल काॅन्क्लेव
Jul 12, 2021, 6:22 pm ISTNationAazad Staff

उच्च शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान में अग्रणी और सार्वजनिक स्वास्थ्य डोमेन के एक हब स्कूल आॅफ डेवलप्मेंट स्टडीज़, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने कोअलिशन आॅफ फूड एण्ड न्यूट्रीशन सिक्योरिटी, नई दिल्ली की मदद से ‘वूमैन एम्पावरमेंट- इम्पैक्ट आॅन मेटरनल एंड चाइल्ड न्यट्रीशन’ विषय पर नेशनल काॅन्क्लेव आयोजित किया। कॉन्क्लेव ने ’कोविड के बाद विकास प्रबंधन पेशेवरों के लिए चुनौतियां और अवसर’ पर ध्यान केंद्रित किया। दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्देश्य कोविड-19 के कारण देश के सामने आने वाले आर्थिक विकास और राजनीतिक चुनौतियों और उन पर काबू पाने की रणनीति को समझना था, महामारी के कारण पैदा हुए विभिन्न अवसरों को लेकर कैंडीडेंट के विकास और मैनेजमेंट के छात्रों के बीच जागरूकता पैदा करना, भविष्य के रोडमैप पर विचार-विमर्श करने के लिए कि प्रबंधन पेशेवरों को मातृ एवं बाल पोषण और अंततः महिला सशक्तिकरण के विशेष संदर्भ में महामारी द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए कैसे तैयार होना चाहिए की दिशा देना था। पैनल में विशिष्ट वक्ता डॉ. शीला वीर, संस्थापक निदेशक, सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण और विकास केंद्र, नई दिल्ली, डॉ. सुजीत रंजन, कार्यकारी निदेशक, काॅलिशन आॅफ फूड एंड न्यूट्रिशन सिक्योरिटी, नई दिल्ली, सुश्री माधुरी नारायणन, पूर्व वरिष्ठ जेंडर इक्विटी एंड डायवर्सिटी एडवाइजर, केयर इंटरनेशनल, स्वीडन और डॉ. भवानी शंकर सरिपल्ली, फैकल्टी आईआईएम इंदौर थे।

डॉ. गौतम साधु, प्रोफेसर, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने कहा, ‘महिला सशक्तिकरण पर दूसरा राष्ट्रीय सम्मेलनः चुनौतियों को समझने और बाधाओं को दूर करने के लिए मातृ एवं बाल पोषण पर प्रभाव के विषय के साथ आयोजित किया गया। अपर्याप्त पोषक तत्वों का सेवन जल्दी और कई गर्भधारण, गरीबी, जातिगत भेदभाव और लिंग असमानता भारत में खराब मातृ पोषण में योगदान करती है। जबकि कुपोषण पूरे जीवन चक्र में देखा जाता है, यह बचपन, किशोरावस्था, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान सबसे तीव्र होता है। पोषण संबंधी समस्याएं विशेष रूप से प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण, एनीमिया, विटामिन ए की कमी से भारतीय बच्चों का एक बड़ा हिस्सा पीड़ित है। भारत में बच्चों के आहार और पोषण की स्थिति संतोषजनक होने से कोसों दूर है।’ उन्होंने कहा, ‘महिलाओं की पोषण संबंधी स्थिति और गर्भावस्था के दौरान, शिशु और छोटे बच्चे को दूध पिलाने (आईवाईएफसी) की प्रथा, बच्चों और स्तनपान कराने वाली माताओं का आहार सेवन और उपलब्धता, सुरक्षित, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता और सुविधाओं की स्थिति भारत में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार लाने वाले ऐसे कुछ कारक हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

डॉ. शीला सी वीर, फाउंडर डायरेक्टर, पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशन एंड डेवलपमंेट सेंटर, नई दिल्ली ने महिला अधिकारिता, महिला पोषण और बाल स्टंटिंग पर बात करते हुए कहा, ‘महिला सशक्तिकरण और महिला पोषण के बीच एक मजबूत संबंध है जिसका महिला और बच्चे के पोषण पर प्रभाव पड़ता है। ऐसी कई स्टडी हैं, जिनमें वर्तमान स्थिति और आगे की राह को लेकर अध्ययन किया गया है कि महिला सशक्तिकरण बाल देखभाल प्रथाओं को कैसे प्रभावित करता है। इस बात के प्रमाण हैं कि खराब पोषण न केवल मातृ मृत्यु दर बल्कि बाल स्टंटिंग यानी बच्चे के कद का अपेक्षाकृत विकसित न होना जैसी समस्या को जन्म देता है। गरीब महिलाओं के पास संसाधनों की कमी है। कम पोषण प्रारंभिक बाल देखभाल पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और स्टंटिंग की वजह बनता है। महिलाओं का खराब पोषण भ्रूण के विकास को बाधित करता हैं जो कम जन्म दर की वजह बनता है और स्टंटिंग के जोखिम को बढ़ाता है। जन्म दर में सुधार होने पर बीएमआई में सुधार होता है। बच्चों में अल्पपोषण की रोकथाम उनके बीच कद के विकास को कम करने में मदद कर सकती है। मातृ ऊंचाई में 1 सेमी की वृद्धि से बच्चों में कम वजन की मृत्यु दर में महत्वपूर्ण कमी आएगी। बाल अल्पपोषण का किशोर पोषण पर प्रभाव पड़ता है, आगे मातृ पोषण और बच्चे के जन्म के वजन पर प्रभाव पड़ता है।’

महिलाओं के सशक्त होने से गर्भावस्था के दौरान अच्छे पोषण, पर्याप्त ऊर्जा और संसाधनों जैसे विभिन्न सकारात्मक कारक मिलेंगे। जन्म के अच्छे परिणाम होंगे। सशक्त होने पर महिलाओं के पास बेहतर बाल देखभाल प्रथाएं होंगी, निर्णय लेने की शक्ति में सुधार होगा जिससे देश बेहतर बाल आहार प्रथाओं की ओर अग्रसर होगा। इस प्रकार पोषण और महिला सशक्तिकरण के बीच सीधा संबंध है। डॉ. वीर ने भारत, बांग्लादेश और नेपाल में छोटे बच्चों में स्टंटिंग से जुड़े उच्चतम जोखिम वाले कारकों पर प्रकाश डाला, उन्होंने कहा, ‘भारत में सबसे अधिक जोखिम कारक माताओं की शिक्षा नहीं होना है, यह माताओं के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करने वाले पहलुओं में से एक है। बांग्लादेश में स्टंटिंग के जोखिम कारक हैं, घरेलू हिंसा, माध्यमिक शिक्षा की कमी, कम निर्णय लेने की शक्ति, नेपाल में यह खुले में शौच, एएनसी के दौरे की कमी जैसी कई समस्याओं से जुड़ा है। महिलाओं को सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवाओं, मातृत्व सुरक्षा, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और समय और ऊर्जा की बचत करने वाले उपकरणों के अधिकार के बारे में अच्छी तरह से सूचित करने के लिए सशक्त करना चाहिए, उनके पास स्वतंत्र बैंक खाते होने चाहिए और प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुंच होनी चाहिए। दक्षिण एशिया में सबसे मजबूत बाल पोषण पर सकारात्मक प्रभाव के प्रमाण मिले हैं।’

डॉ. सुजीत रंजन, कार्यकारी निदेशक, काॅलिशन आॅफ फूड एंड न्यूट्रिशन सिक्योरिटी, नई दिल्ली ने कोविड-19 महामारी की स्थिति में मातृ एवं बाल पोषण में एक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठन की चुनौतियों और भूमिका पर बात की। ‘खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। इस नकारात्मकता के बीच भी विकास संगठन आने वाले वर्षों में उम्मीद की किरण देख रहे हैं। महामारी सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देकर, डेटा संस्कृति को बढ़ावा देकर, सिंगल-विंडो प्रणाली के माध्यम से पूरे सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करने का एक अवसर है जहां सेवाएं सबसे कमजोर लोगों तक पहुंच सकती हैं। सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य और पोषण का ध्यान रखना और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को शामिल करते हुए क्षमता निर्माण करके समुदाय को प्रेरित और शामिल किया जा सकता है। इसमें कुछ बाधाएं हैं, जिनमें कुशल मानव संसाधनों की कमी, तकनीकी हस्तक्षेपों को स्वीकार करने की अनिच्छा, नीति निर्माताओं को समझाने में कठिनाई, पोषण के लिए समर्पित वित्तपोषण की कमी, सुरक्षा सुनिश्चित करना और सेवा प्रदाताओं के लिए एहतियाती उपाय और समुदाय द्वारा दूरस्थ पहुंच, विश्वसनीय और गुणवत्ता वाले डेटा की कमी, विदेशी धन प्राप्त करना मुश्किल बनाने वाले एफसीआरए के नए मानदंड आदि शामिल हैं।’

डॉ. रंजन ने आगे संकेत दिया कि भारत कुपोषण से निपटने की गति और ऊर्जा से पीछे हटने का जोखिम नहीं उठा सकता। महामारी से खड़े हुए मुद्दों और चुनौतियों का समग्र रूप से समाधान करना अकेले सरकार के लिए संभव नहीं है। सभी को हाथ बंटाना होगा। कुपोषण एक मौजूदा चुनौती रही है जिससे हम जूझ रहे हैं, महामारी ने इस आग में घी डाला है। पोषण और कोविड-19 बड़ी चुनौती है। 17 एसडीजी में भी कुपोषण एक महत्वपूर्ण संकेतक रहा है और इसे एक समस्या के रूप में पहचाना गया है।

सुश्री माधुरी नारायणन, पूर्व वरिष्ठ जेंडर इक्विटी एंड डायवर्सिटी एडवाइजर, केयर इंटरनेशनल, स्वीडन ने खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण (एसडीजी 2) सुनिश्चित करने के लिए लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण (एसडीजी 5) प्राप्त करने के महत्व को समझने पर बात करते हुए कहा, ‘खाद्य और पोषण सुरक्षा आपस में जुड़ी हुई है जहां महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता दोनों को प्राप्त करने का केंद्र है। विकासशील देशों में महिलाएं कृषि श्रम शक्ति का 43 फीसदी हिस्सा हैं। एशिया और उप-सहारा अफ्रीकी देशों में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 फीसदी तक बढ़ रही है। गरीबी और खाद्य पोषण असुरक्षा का प्रमुख कारण लिंग आधारित भेदभाव या महिलाओं के मानवाधिकारों से इनकार है। वे खाद्य उत्पादकों, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधकों और आय अर्जित करने वालों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उपरोक्त सभी पहलुओं के बावजूद, दुनिया में गंभीर भूख से पीड़ित लोगों में 60 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं। महिलाओं के पास अपनी जमीन तक पहुंच या स्वतंत्रता नहीं है, यह परिवार के साथ उनके जुड़ाव पर निर्भर करता है। सामाजिक पूंजी उन्हें रिश्ते बदलने में मदद नहीं कर रही है। महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिए गए हैं, उन्हें सामूहिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है समूहों की बात करें तो वहां बहिष्करण भी हो सकता है। सामाजिक प्रभाव पैदा करने वाली संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी कम है।’

डॉ. भवानी शंकर सरिपल्ली, फैकल्टी आईआईएम इंदौर, ने भविष्य के रोडमैप और रणनीति पर बात की कि कैसे प्रबंधन पेशेवरों को कोविड-19 महामारी और मातृ एवं बाल पोषण के विशेष संदर्भ में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने तीन मॉडलों पर चर्चा की जिसमें मॉडल 1-सरकार की पहल, मॉडल 2-कॉर्पोरेट पहल और मॉडल 3- एनजीओ पहल शामिल हैं, ‘अवसरों और चुनौतियों के साथ-साथ मातृ और बाल पोषण को बढ़ावा देने के लिए मॉडल की बात करें तो एनएफएचएस 2020 रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 और 2019-2020 के बीच 22 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में बच्चों में कुपोषण में काफी वृद्धि हुई है। यूनिसेफ 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 50 फीसदी बच्चों को उनकी ऊंचाई के लिए बहुत छोटा या कमजोर (बहुत पतला) पाया गया। लैंसेट 2019 की रिपोर्ट के अनुसार आश्चर्यजनक रूप से 68 फीसदी यानी 5 साल से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौतें कुपोषण से थीं। खाद्य और पोषण सुरक्षा विश्लेषण 2019 के अनुसार, देश में गरीबी और कुपोषण का अंतर पीढ़ीगत संचरण देखा गया, यहां कोरोना लॉकडाउन ने स्थिति को और खराब कर दिया। विभिन्न सरकारी पहल, जैसे पोषण 2.0, आंगनवाड़ी सेवाएं, पूरक पोषण कार्यक्रम, किशोर लड़कियों के लिए पोषण अभियान योजना जैसी पहलों ने देश में स्वास्थ्य, कल्याण और रोग और कुपोषण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का पोषण करने वाली विकासशील प्रथाओं पर नए सिरे से ध्यान देने के साथ पोषण सामग्री, वितरण, आउटरीच, परिणाम को मजबूत किया है।’

डॉ. भवानी शंकर सरिपल्ली, फैकल्टी आईआईएम इंदौर ने यह भी कहा, “खिलाड़ियों, क्षेत्रों, विकास के चालको, सरकार के पोषण अभियान, बेटी पढाओ बेटी बचाओ अभियान आदि को एक दिशा में मिल कर काम करना जरूरी है। मॉडल 2 टाटा ट्रस्ट्स कॉरपोरेट इनिशिएटिव है जो 13 राज्यों में 48 लाख व्यक्तियों को कवर करता है। यह पहल सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए एजेंसियों के साथ मिलकर काम करती है। यह पहल नीति समर्थन के लिए बुनियादी ढांचे, डेटा और सलाहकार सेवाओं का भी समर्थन करती है। ट्रस्ट साइट क्षेत्रों का पुनरीक्षण कर सकता है और पोषण की स्थिति का अध्ययन कर सकता है, स्थानीय समूहों / प्रणालियों का निर्माण कर सकता है जो पोषण महत्व के बारे में जागरूकता फैलाएंगे और परियोजना के निर्बाध अधिग्रहण के लिए एक स्थानीय एजेंसी को परियोजना को सौंपने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करेंगे। तीसरा मॉडल एक व्यक्ति या एक गैर सरकारी संगठन के नेतृत्व वाली पहल है जिसमें संगठन बीज बैंक स्थापित करने, महिलाओं को अधिकार प्रदान करने, स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके गतिविधियों को शुरू करने में मुखर है।

डॉ. भवानी शंकर सरिपल्ली ने आगे बताया कि वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 2.74 अरब डॉलर का अनुमानित बजट रखा है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में 2.58 अरब डॉलर खर्च किए गए थे। प्रमुख चुनौतियां विलय की योजनाएं हैं जो संसाधनों को खर्च करने के बेहतर तरीके के रूप में प्रकट हो सकती हैं। कोविड-19 अपनी व्यापकता के कारण पोषण में प्रयासों पर भारी पड़ रहा है और महत्वपूर्ण बजट की जरूरत है जो स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं में सुधार के लिए आवश्यक हैं।

कॉन्क्लेव में देश-विदेश के प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें विकास प्रबंधक, कार्यक्रम के नेता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास पेशेवर, नागरिक समाज संगठन, सीएसआर, शिक्षाविद आदि शामिल थे। डॉ. गौतम साधु, प्रोफेसर, स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज ने कॉन्क्लेव का संचालन किया और प्रोफेसर राहुल घई, डीन, स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी जयपुर ने की-नोट स्पीच दी। प्रोफेसर राहुल घई ने विशिष्ट वक्ताओं की उपस्थिति के लिए अपना आभार व्यक्त किया और कहा, ‘स्कूल आॅफ डेवलपमेंट स्टडीज, कल्याण के विशाल दायरे में स्वास्थ्य की परिभाषा और अनुभव को व्यापक बनाने का प्रयास करता है। एसडीएस को विकास के मुद्दों पर अत्याधुनिक अनुसंधान और भारत और विदेशों में कार्यरत नागरिक समाज संगठनों और विकास एजेंसियों (सरकारी, सीएसआर और बहुपक्षीय एजेंसियों सहित) के बढ़ते नेटवर्क के बीच एक सेतु के रूप में काम करने के लिए बनाया गया था।

 

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