मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand)

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मुंशी प्रेमचंद्र (Munshi Premchand)

Munshi Premchand(मुंशी प्रेमचंद्र) was one of the greatest writers of modern Hindi and Urdu literature.
Aug 27, 2010, 6:38 pm ISTIndiansAazad Staff
Munsi Premchand
  Munsi Premchand

मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म १३७  साल पहले ३१  जुलाई सन १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर लमही नामक गाँव मे हुआ था|  मुंशी जी के  लिए अच्छा साहित्य सत्य और मानवता के बारे में था| मुंशी  प्रेम चंद्र एक आधुनिक भारतीय लेखक थे  जो कि उनके आधुनिक हिंदी-उर्दू साहित्य के लिए प्रसिद्ध थे, मुंशी जी का मानना था कि साहित्य सच्चाई और मानवता के बारे में है| मुन्शी प्रेमचंद बीसवीं शताब्दी के शुरूआती भारत के सबसे प्रमुख हिन्दुस्तानी लेखकों में से एक थे, मुन्शी प्रेमचंद  मध्यवर्गीय पाठक को उदासीनता से लेकर ज्ञान की एक अवस्था तक ले जाता है|

मुंशी प्रेमचंद्र का नाम घनपत राय था| इनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल  था | जो डाक घर मे मुंशी के पद पर नौकरी करते थे | मुंशी जी मध्यम स्तर के थे, उनके घर मे खाने-पीने की कमी न थी तथा रहन-सहन स्तर मध्यम दर का था | मध्यम स्तर के घर मे जन्म लेने के कारण मुंशी जी अजीवन मध्यम जीवन व्यतीत करते रहे | इन सब से जूझने के कारण इन्होने इस जीवन की त्यागा |

मुंशी जी जब ६ वर्ष के थे तब उन्हे एक मोलवी के घर लालगंज नामक गाँव मे फारसी और उर्दू पढ़ाने के लिये भेजा गया | पढाई-लिखाई के कारण मुंशी जी का जीवन बहुत ही  मस्ती से व्यतीत हो रहा था, लेकिन जब ये ७ साल के थे तथा इनकी माता जी बहुत बीमार पड़ी और बीमार होने के कारण इनकी मृत्यु हो गयी तब ये बहुत ही छोटे थे |

माँ की मृत्यु के बाद मुंशी जी बहुत हे टूट गयी क्योकि वो अपनी माँ के साथ ही सारे लाड तथा खेलना-कूदना करते थे | मुंशी जी को थोडा प्यार अपनी बड़ी बहन से मिला लेकिन कुछ समय पश्चात् उनका भी विवाह हो गया, इन सबके बाद मुंशी जी की दुनिया एक प्रकार से बहुत अकेली और सुनी हो गयी, इन सब चीजो से बाहर आने के लिये मुंशी जी ने अपने को उपन्यास और कहानियो मे व्यस्त कर लिया, उनकी कहानियो मे उन्होने ऐसी कहानियो का वर्णन किया है जिसमे बचपन मे किसी बच्चे के माँ-बाप की मृत्यु हो जाती है, वो अपना अकेला पन दरिदता और दीन-हीन दशा को व्यक्त किया है उनकी माँ से उनका बिछ्रना और पिता के देख-रेख मे रहने वाले मुंशी जी एक रास्ता चुना जिस रास्ते ने उन्हे आगे चल कर एक उपन्यास-कार, महान कथाकार और बहुत सी उपाधियो से सम्मानित किया गया |

घनपत राय का विवाह १५-१६ बरस मे ही कर दिया गया, लेकिन ये विवाह उनको फला नही और कुछ समय के बाद ही उनकी बीवी की मृत्यु हो गयी, उसके कुछ समय के बाद उन्होने बनारस के बाद चुनार के स्कूल मे मास्टरी की | नौकरी के साथ ही उन्होने बी.ए की | मास्टरी करते रहते प्रेमचंद्र के बहुत से तबादले हुई उन्होने  जन-जीवन को बहुत ही गहराई से देखा और  अपना जीवन साहित्य की तरफ समर्पित कर दिया |

उनके तीन लड़के थे बड़ा मनसा-राम १६ वर्ष का था, मझला जियाराम १२ वर्ष और सियाराम ७ वर्ष का था, जब मुंशी जी ने दुबारा विवाह किया | मुंशी जी का का विवाह निर्मला से हुआ तब मुंशी जी तोता-राम के नाम से जाने जाते थे | तब मुंशी जी बवासीर और एसिडिटी बीमारियों से ग्रस्त थे घर मे सिर्फ एक विधवा बहन जिसका नाम रुख्मनी जो ५० साल से ऊपर थी जो उनके साथ ही रहती थी | प्रेमचंद्र ने लगभग ३०० कहानिया तथा चौदह बडे उपन्यास लिखे |
सन १९३५ मे मुंशी जी बहुत बीमार पर गये और ८ अक्टूबर सन १९३६ को ५६ वर्ष की आयु मे ही उनकी मृत्यु हो गयी | मुंशी जी के साहित्य का अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भाषाओ मे किया जा चुका है |

मुंशी प्रेमचंद्र की प्रसिद्ध कहानिया
पंच परमेश्वर,
ईदगाह प्रेम चन्द्र जी एक कहानी जो गरीब लड़के हामिद की कहानी है जिसकी पास बहुत ही कम धन था ईदगाह मे जाने के लिये वो अपने दोस्तों के साथ गया जहा उसके दोस्तों ने जहा अपना सारा धन खिलोनै और मिठाई पर  लगाया  वहा हामिद को याद आया की उसकी बुडी दादी के हाथ रोटी बनाते वक़्त जल जाते है उसने अपने थोडे से धन  से एक चिमटा ख़रीदा जिससे  उसके दादी के हाथ न जले ये कहानी  दिल को दहला देती है |.
मंत्र,
नशा,
शतरंज के खिलाडी,
पूस की रात,
आत्माराम,
बूढी काकी,
बड़े भाईसाहब,
बड़े घर की बेटी,
कफ़न,
उधार की घडी,
नमक का दरोगा,
पंच फूल,
प्रेम पूर्णिमा,
राम कथा,
जुरमाना
उपन्यास
गबन,
बाज़ार-इ-हुस्न और  सेवा  सदन  बाज़ार-इ-हुस्न प्रेमचंद्र जी के प्रसिद उपन्यास थे जो उर्दू मे थे
गोदान,
कर्मभूमि,
कायाकल्प,
मनोरमा,
निर्मला,
प्रतिज्ञा,
प्रेमाश्रम,
रंगभूमि,
वरदान,
प्रेमा |

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