Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 08:53 AM IST
मैत्रेयी पुष्पा (Maitreyi Pushpa) कलम नै निडर बनाया (Born: November 30,1944, India)
हिंदी कथा लेखिका मैत्रेयीपुष्पा ने लेखन देर से शुरू किया उनके शब्दों में उनकी छोटी बेटी ने उनका हौसला बढ़ाया और कहा तुम लिख सकती हो। शादी के २५ साल बाद में लेखन का साहस जुटा सकी तो इसके पीछे मेरी बेटिया थी, मन के भीतर कही मौजूद लेकिन उपेक्षित कर दिये लेखक को मैने जगाया और पहली कहानी लिखी 'आक्षेप' यह कहानी अप्रैल १९९८ को प्रकाशित हुई |जितने दिन नही लिखा था उसकी भरपाई की जल्दी -जल्दी लिखा।पहले कहानी संग्रह 'चिन्हार' फिर उपन्यास 'बेतवा बहती है, और उसके बाद 'इदन्नम्माम 'आया इदन्नम्माम से मुझे पहचान मिली ।
मैंने हर कोण से गांव इस्त्री की कहानी लिखी । समाज ने उसे साचै में रखा है वह खाचे मैने दिखाए मेरे ९० फीसदी पत्र वास्तविक जिंदगी से होते हे उन्हें बनाने में सिर्फ १० फ्सीदी कल्पना शामिल होती है ।
कई बार एक पात्र के साथ जो घटा है , उसकी स्थिती को दूसरे से मिलाकर मुकमल कहानी बनती है ।
मेरे लिए कल्पना की बुनियाद पर लिखना मुश्किल है, कहानी का कच्चा माल मुझे झांसी में मिलता है , दिल्ली में नही जैसे में 'अलमा' कबूतरी लिखने से पहले कबूतरी जनजाति के बीच रही उनके जीवन को नजदीक से देखा जो , जो देखा वही लिखा मुझे ख़ुशी हे कि गॉव की स्त्रियाँ अपनी दृष्टि लेकर मेरे साथ साहित्यिक मंच पर आयी और अपने दस्तखत कर गयी वह किसी पुरुष के दबाब में आई |
स्त्रियाँ की जो नही पीढ़ी आ रही है उसने मेरे लेखन को अपने अनुशीलन योग्य और सवन्त्र्त का मन है यही मेरे लेखन सबसे बड़ी उपलब्धि रही । स्त्रियाँ की आत्मकथा समाज सच्ची कहानी होती है , मैने आत्मकथा के तौर पर पहले कस्तूरी कुण्डल बसै लिखा कस्तूरी मेरी माँ है , अर्चना वर्मा के सम्पादन में हर स्त्रियाँ विशेषांक निकल रहा था वंश परम्परा नाम से उसमे एक स्तम्भ था जिसने किसी हिंदी लेखिका का आत्मवृत जाना जरुरी था अर्चना आप उसके लिये अपने जीवन का कोई हिस्सा लिखें मैंने कहा क्या लिखू ?
अर्चना मानी नही और उसके आगे उसका विस्तार 'कस्तूरी' कुण्डल बस के रूप में सामने आया इसमें मेरी पूरी पिछली जिंदगी और वह हिस्सा है , जिसमे में अपनी माँ को देखती हु , वह वक्त भी जब मैंने माँ से कहा मेरी शादी करा दो इसे पड़कर मुझे कई लोगो ने चिठ्या भेजी आगे का हिस्सा लिखने के आग्रह में मैंने कस्तूरी कुण्डल बसै लिखा २००८ में गुड़िया के भीतर गुड़िया पहले हिस्से से माँ के साथ जिंदगी थी दूसरे हिस्से में पति गुड़िया भतरा गुड़िया मैंने पाठको के माँग पर आज की स्त्रियाँ पुरषो के लिए लिखी अंतराल किसी रचना को आगे बढ़ाया वह बेहतर तरीको से सामने आई है ।
विश्व साहित्य अफ्रीकी लेखको का लेखन मुझे अपील करता है , कथात्मक लेखन के आलावा में विचारतमक लेखन भी करती हु, जब लिख नही पाती हु, तब पढ़ती हु कभी पुराने फ़िल्मी गीत और लोकगीत सुन लेती हु । टीवी पर आने वाले लोकनृत्य देख लेती हु ।
कहानियाँ (Stories)
Fighter ki Diary (फाइटर की डायरी )
Samagr kahaniyan ab tak (समग्र कहानियां अब तक )
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Peyaari ka sapna (पयारी का सपना )
Goma hansti hai (गोमा हंसती है )
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Chinhaar (चिन्हार )
Novels (उपन्यास )
Gunaah Begunaah (गुनाह बेगुनाह )
Kahi Isuri Phaag (कही इसुरी फाग )
Triya hath (ट्रीय हाथ )
Betavaa behti rahi (बेटवा बहती रही )
Idannammam (इदन्नम्माम )
Chaak (चॉक )
Jhoola Nut (झूला नत )
Alma Kabootri (अल्मा कबूतरी )
Vision (विज़न )
Aganpaakhi अगनपाखी )