Friday, Nov 15, 2024 | Last Update : 04:02 AM IST
लोहड़ी की प्रचलित कहानी
मुगलों का जब देश में राज्य था यह कहानी उस वक़्त की है पंजाब में एक गांव था पट्टी और वहा एक परिवार रहता था जहा हिन्दू की दो बेटिया थी सुन्दरी और मुंदरी दोनों ही बहुत खूबसूरत थी और गांव के तहसील दार नवाब खां की उन दोरो पर बहुत बुरी नज़र थी और एक दिन नवाब खां ने ऐलान क्र दिया कि मकर सक्रान्ति के दिन मैं हिन्दू की दोनों बेटियो को उठा ले जाऊँगा और शादी क्र लूंगा और यह सुन हिन्दू का परिवार रोने लगा तो गांव वालो ने गांव के दबंग दुल्ला सरदार से डरता था पूरी बात सुनने के बाद दुल्ला सरदार ने हिन्दू से कहा कि तुम अपनी बेटियो के लिए तुरंत योग्य वर ढूंढो तो बेटियो की शादी मैं करवा दूँगा तब गांव वालो ने फटाफट दो वर ढूंढे और दुल्ला ने मकरसक्रांति के एक दिन पहले ही गांव के चौराहै पर सरे आम अग्नि जलाकर उन लड़कियों का विवाह करवा दिया तबसे पंजाब के हिन्दू हर मकरसक्रांति के एक दिन पहले चौराहों पर आग जलाकर सिखों का ध्नयवाद करते है और गीत गाकर दल्ला सरदार को याद करते है ।
सुन्दर मुन्दरिये ओ तेरा कौन सहारा ओ
दुल्ला पट्टी वाला ओ
दुल्ले ने तिह ब्यहि ओ झोली शक्कर पाई ओ
मकर सक्रांति ,लोहड़ी ओर पोंगल
जनवरी मास मे मकर-सक्रांति, लोहड़ी ओर पोंगल ये तीनो त्यौहार मनाये जाते है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशिया बारह है, वर्ष के बारह महीनो मे सूर्य इन राशियों मे चक्कर लगता है | जिस दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करता है | उस दिन को सक्रांति कहते है | प्राय प्रतिवर्ष जनवरी मास मे १४ तारीख को ऐसा होता है | इस दिन से सूर्य उत्तर की ओर घूमना प्रारंभ कर देता है | हिन्दू शास्त्रों के अनुसार मकर-सक्रांति के दिन से देवतायो के दिन प्रारंभ होते है जो अगले छै माह तक चलते है | इसे ही 'उतरानारायण' कहते है, मकर सक्रांति के अवसर पर उत्तर भारत मे बड़ी हुई सर्दी बहुत कम हो जाती है दक्षिण भारत विशैश्कर तमिलनाडु मे धान को नयी फसल पककर तैयार होजाती है |
सूर्य के मकर राशि मे संक्रमण का यह महत्वपूर्ण अवसर उत्तर भारत के कुछ भागो मे 'खिचड़ी ' या 'सक्रांत' के नाम से जाना जाता है | इस दिन लोग गंगा, जमुना ओर दूसरी पवित्र नदियों मे स्नान करते है | मंदिरों मे अपने इष्ट देव का दर्शन और पूजन करते है कुछ लोग भगवान शिव को तिल की भेट से प्रसन्न करते है | इस दिन लोग दाल, चावल की खिचड़ी, तिल, गुड, घी, नमक आदि का पंडितो को दान करते है और स्वयं भी खिचड़ी खाते है | पुराड़ो मे तिल दान को पाप से मुक्त करने वाला बताया है |
मकर सक्रांति की पूर्व संध्या पर पंजाब और हरियाणा प्रदेशो मे बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी ' नामक त्यौहार मनाया जाता है | यह पंजाबियों का बहुत ही प्रिय त्यौहार है | लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही छोटे-छोटे, बडे लोहड़ी के गीत जैसे "सुन्दर मुन्द्रियाई हो, तेरा कौन विचारा " इत्यादी गाते हुई लकडिया या पैसा इकठे करने लगते है | शाम के समय आग जलाई जाती है | लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर कटते है , उस पर रेवड़ी, चावल के बने चिर्व्दै , मक्का की खिले आदि की भेट चडाई जाती है | आग के चारो ओर बैठकर इस्त्री, पुरुष ओर बचे आग सेकते है और रेवड़ी , खिले आदि बडे आनंद से खाते है |
लोग एक दूसरे को लोहड़ी की बधाई देते है | घर मे वधु की पहली लोहड़ी और बचे की पहली लोहड़ी बहुत अचे ढंग से मनाई जाती है | इस मोकै पर संबंधियों और मित्रो को मिठाई बाटी जाती है | लोहड़ी के अगले दिन मकर-सक्रांति के अवसर पर पंजाब मे जगह-जगह पर मेले लगते है | सबसे अधिक प्रचलित मेला ' मुकतैश्वर' मे होता है | ये सिखों का बहुत बड़ा मेला है | ये तीन दिन चलता है | पहले दिन श्रदालु लोग पवित्र नदियों मे नहाते है | दूसरे दिन जलूस बनाकर तीन पवित्र पहाडियों पर जाते है , इन पहाडियों को रिकब साहब टीनिया और मुख्वंजा साहब कहते है | लोग वापस lotatai समय कई पवित्र स्थानों के दर्शन भी करते है | इस दिन विशेष रूप से गन्ने के रस से खीर बनाई जाती है |
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश मे मकर्सक्रंती के अवसर पर 'पोंगल' नामक त्यौहार मनाया जाता है ,'पोंगल` तमिल लोगो का सबसे बड़ा पर्व है | तमिल मे 'पोगु ' शब्द का अर्थ है उबलना कुछ दूसरी चीजो के साथ विशेष कर दूध मे उबाले गये चावल को तमिल मे 'पोंगल' कहते है | इसलिये इस पर्व का नाम भी पोंगल पड़ा है | 'पोंगल' मुलता एक फसल सम्बन्धी त्यौहार है | पोंगल पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है |
पहला दिन ' भोगी पोंगल ' कहलाता है , ये सूर्य के दक्षिणायं पथ के अंतिम दिन मनाया जाता है इसके दूसरे दिन यानि मक्रसक्रंती से ही उत्तरायण का प्रारंभ हो जाता है | इस दिन घरो को रंगोली से सजाया जाता है | हर गृहस्थ अपने घरो की लिपाई-पुताई और साज-सज्जा करता है | पूजा पाठ, गाना-बजाना और खान-पान की खुशिया घर-घर मे दिखाई देती है |
दूसरे दिन को पोंगल या सूर्य पोंगल कहते है | यही सक्रांति का दिन है | इस दिन नयी धान को कूट कर निकला गया चावल, दूध, घी और गुड के साथ नये घडो मे उबाला जाता है | बचे उन उबले हुई चावलों के चारो और जुट जाते है और घंटिया बजा बजा कर चिलाते है 'पोगलो-पोगलो' , 'पोगलो पोगलो | इस प्रकार जो खीर तैयार होती है उसे सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है | इस दिन सभी जगह सूर्य देवता की पूजा के द्रश्य दिखाई देते है | लोग एक दूसरे से पूछते है 'क्या पोंगल हो गया ? उतर दिया जाता है 'हा हो गया ' |
सूर्य के अतिरिक्त वायु देवता और गृहदेवता की पूजा भी की जाती है | पोंगल के अवसर पर सभी नये कपडे पहनते है और मिलकर खाते है | इस दिन गन्ना चुसना रोचक और आवश्यक समझा जाता है |
पोंगल का तीसरा दिन मोट्टू पोंगल ' कहलाता है , मोट्टू का अर्थ है 'पशु ' ये दिन पशु की पूजा की जाती है | बैलो को नहलाया जाता है | उनके सीगों को रंगो से चमकाया जाता है | कई लोगो बैलो के गले मे माले और घंटिया बंधाते है | बैलो को अच्छी अच्छी चीजे खिलाई जाती है | सूर्य देव को चडाई हुई खीर भी पशु मे डाली जाती है | पोंगल पर्व पर बैलो का रोमांच कारी प्रदर्शन भी होता है |
पोंगल पर्व की समाप्ति पर रात मे भोज होता है जिसमे नयी फसल का चावल बडे प्रेम से खाया जाता है भोज मे सभी वर्ग के लोग बिना भेद भाव मे सभी वर्ग के लोग बिना भैद भाव के सम्मलित होते है | मकर सकर्न्ति के अवसर पर मनाये जाने वाले इन त्योहारों मे कुछ विशेष बाते परस्पर समान है| जैसे नदियों मे स्नान करना, तिल अथवा दूसरी चीजो दान मे देना, खाने मे गुड या गन्ने का प्रयोग करना अग्नि अथवा सूर्य की पूजा करना और नाच गाकर, मिलजुल कर उत्सव मनाना |
भारत की कृषि परक समर्धि और ऋतु परिवर्तन के सूचक ये तीनो त्यौहार भारत वासियों की आपसी समानता और भावत्मक एकता के प्रतिक है |
लोहड़ी का गाना (लडकियों)
“हल्ले नी मैई हल्ले
दो बेरी पत्ते झुलले
दो झूल पयेआं कह्जुर्रण
खाजुर्रण सुट्ट्या मेवा
इस मूंदे दे घर मंगेवा
इस मूंदे दी वोटी निक्दी
ओह ! खंडी चूरी , कुत्दी
कूट! कूट! भराया थाल वोटी बवे नानाना नल
निनान ते वादी परजी
सो कुडमा दे घर आयी !
में लोहरी लें आयी! ”
लोहड़ी के गाना (लडको )
सुंदर मुंदरिये हो !
तेरा कौन विकाहरा हो !
दुल्लह भट्टी वल्ला हो !
दुल्ल्हे दी धी व्यये हो !
सेर शक्कर पाई हो !
कुड़ी डा लाल पताका हो !
कुड़ी डा सालू पाटता हो !
सालू कौन समेटे !
चाचे चूरी कुट्टी ! ज़मीदार लुटती !
ज़मींदार सुधाये !
बड़े भोले आये !
एक भोला रह गया !
सिपाही पकड़ के ले गया !
सिपाही ने मरी ईट !
सानू दे दे लोहरी ते तेरी जीवे जोड़ी !
पहींवे रो ते फन्न्वे पित ! ”
“मुकी डा दाना, आना ली के जाना …
हल्ले हुलारे
असी गंगा चले
सास सोरा चले
जेठ जतानी चले
दयोर डरानी चले
पैरी शौंकन चली
हल्ले हुलारे
असी गंगा पोहंचे
सास सोरा पोहंचे
जेठ जतानी पोहंचे
दयोर डरानी पोहंचे
पैरी शौंकन पोहंची
हल्ले हुलारे
असी गंगा नहते शव और हल्ले
जेठ जतानी नहते
दयोर डरानी नहते
पैरी शौंकन नहती
हल्ले हुलारे
शौंकन पीली पुरी
शौंकन दूजी पुरी
शौंकन तीजी पुरी
मैती धक्का दित्ता
शौकन विच्छे रुद गयी
हल्ले हुलारे
सास सोरा रों
जेठ जतानी रों
दयोर डरानी रों
पैर ओह वी रोवे
मैं क्या तुसी क्यों रोंदे
त्वाडे जोगी मैं बथेरी
मेनू दयो बढ़ियाँ जी
हल्ले हुल्लारे ”
English
Sunder mundriye ho!
Tera kaun vicaharaa ho!
Dullah bhatti walla ho!
Dullhe di dhee vyayae ho!
Ser shakkar payee ho!
Kudi da laal pathaka ho!
Kudi da saalu paatta ho!
Salu kaun samete!
Chache choori kutti! zamidara lutti!
Zamindaar sudhaye!
bade bhole aaye!
Ek bhola reh gaya!
Sipahee pakad ke lai gaya!
Sipahee ne mari eet!
Sanoo de de lohri te teri jeeve jodi!
Paheenve ro te phannve pit! ”