Thursday, Dec 26, 2024 | Last Update : 05:54 AM IST
मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद में 25 दिसम्बर 1861 को पंडित ब्रजनाथ और मुनादेवी के यहाँ हुआ था | वे अपने माता-पिता की कुल सात संतानों में से पांचवे पुत्र थे | उनके पिता पंडित ब्रजनाथ जी संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे |
1879 में उन्होंने म्योर सेंट्रल कॉलेज से , जो आजकल इलाहबाद विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की | हैरिसन स्कूल के प्रिंसिपल ने उन्हें छात्रुवृति देकर कलकत्ता विश्वविद्यालय भेजा , जहा से उन्होंने 1884 में बी,ए. की उपाधि प्राप्त की |
हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की।इन्होने समाज सुधारक के साथ साथ पत्रकारिता में भी विषेश स्थान हासिल किया इन्हे ‘महामना’ के नाम से भी जाना जाता है।
कार्यकाल -
1886 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दुसरे अधिवेशन में भाग लिया उस समय मालविया जी की उम्र मात्र 25 साल थी। इस अदिवेशन को मालविया जी ने सम्बोधित किया| वे सन 1909 , 1918 , 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये |
सन 1931 में उन्होंने दुसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधत्व भी किया | राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना पूर्ण योगदान देने के उद्देश्य से महामना ने 1909 में वकालत छोड़ दी यद्यपि उस समय वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पंडित मोती लाल नेहरु और सर सुंदर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में गिने जाते थे लेकिन दस साल बाद उन्होंने चौरा-चौरी काण्ड के मृत्युदंड के सजायाफ्ता 156 बागी स्वतंत्रता सेनानियों की पैरवी की और उनमे से 150 को बरी करा लिया |
मालवीय ने 1909 में अंग्रेजी दैनिक लीडर शुरू किया। एक संपादक के तौर पर 1909 से 1911 तक उसका नेतृत्व किया। उन्होंने 1910 में एक हिंदी अखबार मर्यादा भी शुरू किया। इन्होने अंग्रेजी दैनिक द हिंदुस्तान टाइम्स का अधिग्रहण किया। 1924 से 1946 तक द हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन रहे। उन्होंने 1936 में इसी अखबार का हिंदी संस्करण भी शुरू किया।
मालवीय द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय औपनिवेशिक भारत में शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा था | इसकी स्थापना के लिए मालवीय जी ने अथक प्रयास किये थे उन्होंने इसके लिए भ्रमण कर चंदा इकट्ठा किया था | महात्मा गांधी ने भी उनके इन प्रयासों की सराहना की थी | मावलिया जी को भारत सरकार ने 24 दिसम्बर 2014 को मरणोपरांत भारत रत्न से अलंकृत किया | इनेक सम्मान में, 1961 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
‘सत्यमेव जयथ’ -
मदन मोहन मालवीय द्वार बोला गया नारा ‘सत्यमेव जयथ’ जिसका अर्थ - सच्चाई की ही हमेशा जीत होती है। यह नारा केवल भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में ही नहीं अपनाया गया बल्कि हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के आधार पर लिपि में भी लिखा गया है।