जाने कैसे मिला गांधी जी को महात्मा का खिताब, और किसने पहली बार राष्ट्रपिता कहकर किया था संबोधित

Friday, Dec 27, 2024 | Last Update : 11:09 PM IST

जाने कैसे मिला गांधी जी को महात्मा का खिताब, और किसने पहली बार राष्ट्रपिता कहकर किया था संबोधित

महातमा गांधी जी को देश भर में कई नामों से जाना जाता है। आज देशभर में उनकी पुण्यतिथि मनाई जा रही है।
Jan 30, 2018, 11:05 am ISTLeadersAazad Staff
Mahatma Gandhi
  Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। गांधी जी को‘महात्मा’ की उपाधि किसी संस्था या राज्यसत्ता ने नहीं, बल्कि लोकमत ने दी, जिसे उन्होंने सविनय अवज्ञा के मार्ग पर दृढ़तापूर्वक चलते हुए अर्जित की। गांधीजी को पहली बार ‘महात्मा’ से संबोधित करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर थे।

दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने पर गांधी  जी को पहली बार ‘महात्मा’ की उपाधी से 21 जनवरी 1915 को संबोधित किया गया। दक्षिण अफ्रीका में मोहनदास ने ‘कुली बैरिस्टर’ के रूप में जातीय स्वाभिमान की रक्षा के निमित्त जो त्याग और संघर्ष किया उसने उन्हें दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के बीच ‘गांधी भाई’ बना दिया और गांधी जी के संघर्षों को भारत में’महात्मा’।

वहीं 4 जून 1944 को सुभाषंचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को देश का पिता यानी की राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।

महात्मा गांधी को पूरी दुनिया में लोग तरह-तरह के नामों से जानते हैं, वह महात्मा हैं, बापू हैं, युगपुरुष हैं, महामानव हैं, पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं।

सविनय अवज्ञा आदोलन जिसने अंग्रेजों की नीव हिला दी-
सविनय अवज्ञा को राजनीतिक क्षेत्र में उतारने का पहला प्रयास गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में किया जब वे मात्र चौबीस वर्ष की उम्र में, 1893 में, एक साल के अनुबंध पर वहां रह रहे गुजराती व्यवसायी अब्दुला सेठ के कानूनी सलाहकार बन कर गए। वहां रंगभेद के आधार पर गोरी सरकार द्वारा भारतीयों के साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार किया जाता था। वे लोग इसे सामान्य बात मान कर सहने के आदी हो चुके थे। लेकिन इस अमानुषिक व्यवहार को देख गांधी तिलमिला उठे और इसके विरुद्ध उन्होंने ऐसा अभियान छेड़ा कि एक वर्ष के बजाय उन्हें वहां बीस वर्षों तक रुकना पड़ा। रंगभेद के विरुद्ध गांधी के सत्याग्रह ने सारी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया।

असहयोग आंदोलन-
920 में पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया। इस आंदोलन के कारण सरकार ने गांधी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया। अमदाबाद की अदालत में चले मुकदमे में जज ने उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाते हुए जो टिप्पणी की थी वह उनके महात्मापन को और उजागर करती है। जज ने कहा ‘इस बात की अवहेलना करना असंभव है कि अपने करोड़ों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और एक महान नेता हैं। जो राजनीति में आपसे भिन्न मत रखते हैं, वे भी आपको एक ऊंचे आदर्शों का व्यक्ति और आपका जीवन संत सदृश समझते हैं।’

महात्मा गांधी के कुछ अनमोल वचन जो लोगों को आज भी प्रेरित करते है-
 
आदमी अक्सर वो बन जाता है जो वो होने में यकीन करता है. अगर मैं खुद से यह कहता रहूं कि मैं फलां चीज नहीं कर सकता, तो यह संभव है कि मैं शायद सचमुच वो करने में असमर्थ हो जाऊं। इसके विपरीत, अगर मैं यह यकीन करूं कि मैं ये कर सकता हूं, तो मैं निश्चित रूप से उसे करने की क्षमता पा लूंगा, भले ही शुरू में मेरे पास वो क्षमता ना रही हो।

आप मानवता में विश्वास मत खोइए. मानवता सागर की तरह है; अगर सागर की कुछ बूंदें गंदी हैं, तो सागर गंदा नहीं हो जाता।

जब मैं निराश होता हूं, मैं याद कर लेता हूं कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है. कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते  हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है. इसके बारे में सोचो हमेशा।

विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए. जब विश्वास अंधा हो जाता है तो मर जाता है।

आज महात्मा गांधी की 70वीं पुण्यतिथि है आज ही के दिन यानी 30 जनवरी 1948 को बापू बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) से एक प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले ही थे कि तभी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।

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