Saturday, Dec 21, 2024 | Last Update : 06:48 PM IST
गोपाल कृष्ण गोखले राजनैतिक नेता होने के आलावा वह एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने एक संस्था “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” की स्थापना की जो आम लोगों के हितों के लिए समर्पित थी। देश की आजादी और राष्ट्र निर्माण में गोपाल कृष्ण गोखले का योगदान अमूल्य है।
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म ९ मई १८६६ को महाराष्ट्र के कोथापुर में हुआ था। उनके पिता कृष्ण राव एक किसान थे। सन् १८७४ में गोपाल कृष्ण अपने बड़े भाई गोविन्द कृष्ण गोखले के साथ उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोल्हापुर आ गए। कोल्हापुर कांगल के नजदीक ही उच्च शिक्षा का केंद्र था। यहां अंग्रेजी शिक्षा का भी प्रबंध था। सन १८८४ में वे मुंबई चले गए इस दौरान उनकी १८ साल थी । यहां उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
गोखले शिक्षा के महत्त्व को भली-भांति समझते थे। उनको अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था जिसके कारण वो बिना किसी हिचकिचाहट और अत्यंत स्पष्टता के साथ अपने आप को अभिव्यक्त कर पाते थे।वर्ष १८८५ में गोखले पुणे चले गए और डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के अपने सहयोगियों के साथ फर्ग्यूसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में शामिल हुए। गोपाल कृष्ण गोखले ने फर्ग्यूसन कॉलेज को अपने जीवन के करीब दो दशक दिए और कॉलेज के प्रधानाचार्य बने। इस दौरान वो महादेव गोविन्द रानाडे के संपर्क में आये।
राजनीति में एंट्री -
गोपाल कृषण गोखले ने १८८९ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी में प्रवेश करने से पहले ही बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट लाला लाजपत राय, दादाभाई नरोजी कांग्रेस में शामिल हो चुके थे। पार्टी में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए गोखले ने बहुत प्रयास किया। आम तौर पर गोखले आम जनता की आवाज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने के लिए पत्रों और वैधानिक माध्यमों का सहारा लिया करते थे। भारतीयों को उनका अधिकार दिलाने के लिए वे अक्सर वाद विवाद, एवं चर्चाओं में हिस्सा लिया करते थे।
बाल गंगाधर तिलक से मिलने के बाद गोखले के जीवन को नई दिशा मिल गई। गोपाल कृष्ण गोखले नरम दल के नेता थे तो इसलिए वे विरोधियों को हराने में नहीं बल्कि जीतने में विश्वास करते थे। गोखले पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ‘स्वदेशी’ विचार पर ज़ोर दिया। गोखले ने पहली बार कोल्हापुर में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया। सन १८८५ में गोखले का भाषण सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए थे, भाषण का विषय था- अंग्रेजी हुकूमत के अधीन भारत। इस भाषण की देशभर में सराहना हुई।
गोखले ने बाल गंगाधर तिलक की साप्ताहिक पत्रिका “मराठा” के लिए नियमित रूप से लेख लिखे। अपने लेख के माध्यम से उन्होंने लोगों के अन्दर छिपी हुई देशभक्ति को जगाने की कोशिश की। जल्द ही गोखले डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के सचिव नियुक्त किए गए।
वर्ष १८९४ में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूना में अपने सत्र का आयोजन किया तब उन्हें स्वागत समिति का सचिव बनाया गया। इस सत्र के कारण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य बन गए। गोखले पुणे नगरपालिका के दो बार अध्यक्ष चुने गए। कुछ दिनों के लिए गोखले बंबई विधान परिषद के एक सदस्य भी रहे जहाँ उन्होंने सरकार के खिलाफ अपनी बात रखी।
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक
वह जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना। गोखले का कहना था कि बहुसंख्यक होने और शिक्षा की दृष्टि से उन्नत होने के कारण हिंदुओं का कर्तव्य है कि सामान्य राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने में अपने मुस्लिम भाइयों के सहायक बने। जिन्ना को वे हिंदू- मुस्लिम भाईचारे का सबसे बड़ा पैरोकार मानते थे।
गांधी के साथ-साथ वे जिन्ना के भी राजनैतिक गुरु थे. गोखले एक ऐसे राजनैतिक विचारक थे जो राजनीति में अध्यात्मिक अवधारणा लेकर आये हुए थे। उनके द्वारा स्थापित ‘सर्वेन्टस ऑफ इंडिंया सोसायटी’ का एक मुख्य उद्देश्य राजनीति और धर्म में समन्वय करना था। गांधी ने इसीलिए उन्हें अपना गुरु कहा था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और सर्वेंट्स सोसायटी ऑफ इंडिया के सम्मानित सदस्य गोखले का १९ फरवरी १९१५ को निधन हो गया।