Thursday, Dec 26, 2024 | Last Update : 06:38 AM IST
क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की आज पुण्यतिथि है। आज ही के दिन (27 फरवरी) 1931 को चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार ली थी। उन्होने इलाहाबाद में ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए अपने आप को गोली मार ली थी। कहते है कि जिस पड़े के नीचे चंद्रशेखर आज़द ने अपने आप को गोली मारी थी उस पेड़ को अंग्रेजो ने कटवा दिया था।
उनकी मौत के बाद समूचा इलाहाबाद उमड़ पड़ा था, लेकिन पुलिस की हिमाक़त कि वह शहर के रसूलाबाद श्मशानघाट पर उनके अंतिम संस्कार में भी अपमानजनक रवैया अपनाने से बाज़ नहीं आई। बाद में देशाभिमानी युवकों ने उस स्थल पर जाकर उनकी अस्थियां चुनीं और उनके कलश के साथ विशाल जुलूस निकाला.
तब उस जुलूस को संबोधित करते हुए शचींद्र नाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने कहा था कि आज़ाद की अस्थियों को बंगाल के शहीद खुदीराम बोस की अस्थियों जैसा सम्मान दिया जाएगा।
इस वाक्या से जुड़ा एक किसा है जिसे आपके समक्ष जाहिर किया है-
चंद्रशेखर आजाद की सभा में एक मित्र मास्टर रुद्रनारायण ने ठिठोली करते हुए पूछा कि पंडित जी अगर आप अंग्रेज पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो क्या करेंगे? कुठ समय के लिए वहा मानों जैसे सन्नाटा सा छाया रहा लेकिन थोड़ी देर बाद पंडित जी (आजाद) ने अपनी धोती से रिवॉल्वर निकाली और लहराते हुए कहा, 'जबतक तुम्हारे पंडित जी के पास ये पिस्तौल है ना तबतक किसी मां ने अपने लाडले को इतना खालिस दूध नहीं पिलाया जो आजाद को जिंदा पकड़ ले।' और ठहाका मारकर हंस पड़े। इस बीच उन्होने ये शेर कहा-
"दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे!"
चंद्रशेखर आजाद का जन्म-
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश भाबरा में हुआ था। इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। पिता सीताराम तिवारी और मां जगरानी देवी की इकलौती संतान थे चंद्रशेखर। किशोर अवस्था में उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य की तलाश थी। 14 साल की उम्र में चंद्रशेखर घर छोड़कर अपने एक नए सफर पर निकल पड़े।
आजाद की मां को हमेशा उनके लौटने का इंतजार रहा। शायद इसीलिए उन्होंने अपनी दो उंगलियां बांध ली थी और ये प्रण किया था वो इसे तभी खोलेंगी जब आजाद घर वापस आएंगे। उनकी दो उंगलियां बंधी ही रहीं और आजाद ने मातृभूमि की गोद में आखिरी सांस ले ली।
इस तरह पड़ा चंद्रशेखर तिवारी का नाम ‘आज़ाद’ -
गांधीजी ने सन 1921 में असहयोग आंदोलन का फरमान जारी किया तो तमाम अन्य छात्रों की तरह आजाद भी सड़कों पर उतर आए। कई छात्रों के साथ चंद्रशेखर की भी गिरफ्तारी हुई. जब उन्हें जज के सामने प्रस्तुत किया गया तो चंद्रशेखर ने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका घर बताया. इसके बाद उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुनाई गई. हर कोड़े के वार के साथ चंद्रशेखर ने 'वंदे मातरम' का नारा लगाना शुरू कर दिया. इसके बाद ही चंद्रशेखर, आजाद के नाम से मशहूर हो गए।