स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की जीवनी

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स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की जीवनी

वीर सावरकर को 20वीं शताब्दी का सबसे बड़ा हिन्दूवादी माना जाता था वे अखिल भारत हिन्दू महासभा के 6 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे।
May 29, 2018, 2:05 pm ISTLeadersAazad Staff
Veer Savarkar
  Veer Savarkar

विनायक दामोदर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि  बल्कि एक भाषाविद, बुद्धिवादी, कवि, अप्रतिम क्रांतिकारी, दृढ राजनेता, समर्पित समाज सुधारक, दार्शनिक, द्रष्टा, महान् कवि और महान् इतिहासकार और ओजस्वी आदि वक्ता भी थे।

अंग्रेज़ी हुकूमत के दौरान भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले विनायक दामोदर सावरकर को वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है। वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर गाँव में हुआ था। उनके पिता दामोदरपंत गाँव के प्रतिष्‍ठित व्यक्तिय थे। जब वीर सावरकर 9 साल के थे तभी इनके सर से माता का हाथ उठ गया था।

शिक्षा-

वीर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इन्हे हमेशा से ही पढ़ाई में रुची रही। वीर सावरकर जब विलायत में क़ानून की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, तभी 1910 ई. में एक हत्याकांड में सहयोग देने के रूप में एक जहाज़ द्वारा भारत रवाना कर दिये गये।

क्रांतिकारी संगठन की स्थापना

वीर सावरकर ने पूना में 1940 में  ‘अभिनव भारती’ नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था। आज़ादी के वास्ते काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई।अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले  वीर सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। 1909 में लिखी पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857’ में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आज़ादी की पहली लड़ाई घोषित की थी।

कालेपानी की दुहरी सज़ा -
वीर सावरकर जी को 1911 से 1921 तक अंडमान जेल (सेल्यूलर जेल) में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल भोगी। 1937 ई. में उन्हें आजाद कर दिया गया था, परन्तु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को उनका समर्थन न प्राप्त हो सका 1947 में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया। महात्मा रामचन्द्र वीर (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया। और 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया। इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा।

सावरकर जी की मृत्यु 26 फ़रवरी, 1966 में मुम्बई में हुई थी। भारत सरकार ने वीर सावरकर के निधन पर उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। वीर सावरकर जी के नाम पर पोर्ट ब्लेयर के विमानक्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।

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