इन महिला वैज्ञानिकों ने भारत को पहुंचाया जमीन से आसमान तक

Wednesday, Dec 25, 2024 | Last Update : 12:43 AM IST


इन महिला वैज्ञानिकों ने भारत को पहुंचाया जमीन से आसमान तक

स्पेस रिसर्च को लेकर काफी समय से ये रूढ़िवादी सोच चली आ रही थी कि अंतरिक्ष विज्ञान में केवल पुरुष ही अपना दबदबा बना सकते है लेकिन समय के साथ महिला वैज्ञानिकों ने भी इस क्षेत्र में अपनी पहचान बना ली। इन्ही में से ऋतु करिधल, नंदिनी हरिनाथ, अनुराधा टीके एक है जिन्होंने मांस ऑर्बिटर मिशन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर इसे सफल बनाया है।
Apr 11, 2019, 3:14 pm ISTInspirational StoriesAazad Staff
Scientists
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समय के साथ आज हम काफी तेजी से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे है। समय के पहिए के साथ नित नए अविष्कार कर रहे है। इतना ही नहीं आज हमने चांद पर भी अपनी जगह बना ली है। अंतरिक्ष विज्ञान में कई नए शोध हो रहे है। लेकिन आज से कुछ साल पहले रॉकेट साइंस, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विषयों में पुरूष वैज्ञानिकों का क्षेत्र माना जाता था। लेकिन समय के साथ महिला साइंटिस्ट भी इस मिशन में पुरूषों के साथ दिख रही है। आज हम ऐसी महिला साइंटिस्ट की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने मंगल मिशन में अपना योग्यदान दिया।  इनका योग्यदान हम सभी के लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है।

ऋतु करिधल, उप-संचालन निदेशक, मंगल ऑर्बिटर मिशन
नवाबों का शहर लखनऊ की ऋतु करिधल को बचपन से ही चांद, सितारे के बारे में जानना अच्छा लगता था। वह हमेशा सोचती थी कि आखिर चांद का आकार कभी छोटा तो कभी बड़ा क्यों दिखता है। ऋतु करिधल हमेशा से ही ये जानना चाहती थी कि अंधेरे आकाश के पीछे क्यों छुपा है। अगर कुछ है तो हमे दिखता क्यों नहीं है।

ऋतु स्कूल के दिनों में विज्ञान की एक स्टूडेंट थी।  भौतिक विज्ञान और गणित से उन्हें बहुत लगव था। उन्होंने नासा और इसरो परियोजनाओं के बारे में जानकारी के लिए दैनिक समाचार पत्रों को परिमार्जन किया, समाचार कतरनों को एकत्र किया, और अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित किसी भी चीज के बारे में हर छोटे से विवरण को पढ़ा करती थी।

 दो छोटे बच्चों की माँ,  करिधल कहती हैं कि काम औऱ घर  का संतुलन बनाए रखना आसान नहीं था, लेकिन “मुझे अपने परिवार, मेरे पति और मेरे भाई-बहनों से भरपूर सहयोग मिला।
“उस समय, मेरा बेटा ११ साल का था और मेरी बेटी पाँच साल की थी। हमें बहु-कार्य करना था, समय का बेहतर प्रबंधन करना था, लेकिन मुझे लगता है कि जब मैं काम पर थक जाती थी तब भी मैं घर जाकर अपने बच्चों को देखती थी और समय बिताता थी।” मंगल मिशन पर उन्होंने कहा था कि “मंगल मिशन एक उपलब्धि थी, लेकिन हमें और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। देश को हमसे बहुत अधिक की जरूरत है ताकि अंतिम आदमी तक लाभ पहुंचे।” और ऐसा करने के लिए महिला वैज्ञानिकों से बेहतर कौन है?

नंदिनी हरिनाथ, उप संचालन निदेशक, मार्स ऑर्बिटर मिशन
नंदिनी हरिनाथ को विज्ञान में विशेष रुचि थी। उनकी मां मैथ टीचर थी और पिता इंजीनियर जिन्हें फिजिक्स काफी पसंद था। बचपन में सभी फैमली मिलकर स्टार ट्रेक और विज्ञान से जुड़ी स्टोरी को टीवी पर देखना पसंद करते थे। नंदनी कहती है कि बेशक, उस समय, उसने अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के बारे में कभी नहीं सोचा था और “बस हो गया”।
“यह मेरी पहली नौकरी थी जिसके लिए मैंने आवेदन किया था और सौभाग्य से इसरो में मुझे काम करने का मौका भी मिल गया। आज यहां काम करते हुए २० साल हो गए है। इन २० सालों में कई प्रोजेक्ट पर काम किया। लेकिन मंगल मिशन का हिस्सा बनना उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण बिंदु था।

अनुराधा टीके महिला वैज्ञानिकों की रोल मॉडल -

अनुराधा ने १९८२ में जब इसरो ज्वाइन किया था। उस दौरा यहां महिलाओं की संख्या कम थी। इंजीनियरिंग विभाग में तो यहां ५-६ महिलाए ही काम करती थी। अनुराधा संचार उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की विशेषज्ञ हैं। वे ३४ साल से इसरो में हैं और अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में तब से सोचने लगी जब वे सिर्फ़ नौ साल की थीं। अनुराधा को महिला वैज्ञानिकों का रोल मॉडल माना जाता है। वे इससे इत्तेफ़ाक बिल्कुल नहीं रखतीं कि महिला और विज्ञान आपस में मेल नहीं खाते। वहां कम महिलाएं थी और इंजीनियरिंग विभाग में तो और कम थीं।

इसरो में महिला कर्मचारियों की तादाद लगातार बढ़ रही है, पर यह अभी भी आधे से काफ़ी कम है। अनुराधा के मुताबिक़, इसकी वजह "सांस्कृतिक बोझ है जो हम अपनी पीठ पर लेकर चलते हैं और समझते हैं कि हमारी प्राथमिकता कुछ और है।

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