Sunday, Dec 22, 2024 | Last Update : 07:09 PM IST
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में गुड़ी पड़वा का त्यौहार भारत में मनाया जाता हैं । ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारतवर्ष में कालगणना प्रारंभ हुई थी।
कुछ लोगो का यह भी मानना हैं कि ब्रह्मा ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को सर्वोत्तम तिथि भी कहा था और इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं।
इस दिन से नवरात्रे, संवत्सर का पूजन, ध्वजारोपण आदि विधि-विधान किए जाते हैं। इसी मॉस में बसंत ऋतु भी आती है। बसंत ऋतु के आते ही संपूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है।
गुड़ी-पड़वा चैत्र मास की शुक्ल में आती हैं या वर्ष प्रतिपदा कहा जाता है। इस दिन हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का आरंभ होता है।
चन्द्रमा की कला का प्रथम दिवस शुक्ल प्रतिप को माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार सोमरस चंद्रमा ही औषधियों-वनस्पतियों को प्रदान करता है इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।
पंचाग भी ‘प्रतिपदा' के दिन ही तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग' की रचना की। इसी दिन से वारों, गृहों, मासों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।
महाराष्ट्र में चैत्र मॉस की शुक्ल प्रतिपदा को 'गुड़ी पड़वा' कहा जाता है। गुड़ी का सही अर्थ 'विजय पताका' होता है। पड़वा शब्द संस्कृत के शब्द प्रतिपदा से आया हैं।
महाराष्ट्रा में गुड़ी पड़वा के नाम से। गोवा और कोंकणी केरला में 'संवत्सर पड़वा', कर्नाटका और उगादी में 'युगादी' तथा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 'उगादी' के नाम से जाना जाता हैं ।
साल का पहला महीना के पहला दिन तथा मराठी लोग इसी दिन को नया साल का आगमन मानते हैं, रबी मौसम के अन्त में ही गुड़ी-पड़वा मनाया जाता हैं |
गुड़ी पड़वा के दिन महाराष्ट्रा में गुड़ी को एक लम्बी लकड़ी को हरी और पीली कपड़े पहनाकर आम तथा नीम,लाल फूल और गन्ना आदि से तैयार करके बहुत ऊचाई से घर के बाहर खिड़की या छत पर लगाया जाता हैं जिसको सब लोग देख सके ।
अलग अलग लोगो के अलग विचार गुड़ी पड़वा को ले कर:-
(1) लोगो का ये मनना हैं की ब्रह्मा नै गुड़ी पड़वा के दिन सृष्टि की रचना की थी ।
(2) पड़वा के दिन रामचन्द्र जी रावण को पराजित कर गुड़ी पड़वा के दिन १४ वर्ष का वनवास पूरा करके अयोधया वापस आए थे आज के दिन हर साल अयोधया में राम चन्द्र की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं गुड़ी को भगवान रामचन्द्र की जीत का सिंबल मन जाता हैं |
(3) गुड़ी का मतलब बुरिया अंत और घर में खुशियों का आगमन होना माना जाता हैं |
(4) गुड़ी की दिशा को सीधे हाथ की दिशा पर घर पृ रेखा जाता हैं |