Sunday, Nov 24, 2024 | Last Update : 09:29 PM IST
रक्षा बन्धन दिनांक ०७-०८-२०१७ को चंद्रग्रहण है तथा भद्रा सुबहः ११:०६ तक है | ग्रहण का सूतक दोपहर ०१:४४ पर लगेगा तथा शुद्ध रात्रि को १२:४३ पर होगा | इसलिये सोंड जिमाडा और रक्षा बंधन का कार्य ११:०७ से ०१:४३ के बीच करना अति शुभ रहेगा |
रक्षाबंधन भाई बहनों का वह त्योहार है जो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। रक्षा बन्धन हिन्दू श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है,रक्षा बंधन का ये त्योहार भाई और बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। पूरे भारत देश में इस दिन का माहौल देखने लायक होता है, रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह इतना महत्वपूर्ण बना है।
रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, बहने भाइयो का तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। रक्षाबंधन का इतिहास कथा इस प्रकार है मनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है|
रक्षा बन्धन से सम्बंधित कई कथाये प्रसिद्ध है-
(१) राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
(२) एक दूसरी कथा महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख किया गया है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।
(३) इतिहास में भी राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं। मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।
(४) ऐसा भी कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
(५) राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।
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