गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

Friday, Mar 29, 2024 | Last Update : 05:41 PM IST


गणेश चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान गणेश देव समाज में सर्वोपरि स्थान रखते है। इन्हे विघ्न विनायक भी कहा जता है। हिंदू पुराण के मुताबिक भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। इस दिन को देशभर में धूम धाम से मनाया जाता है।
Sep 7, 2018, 2:59 pm ISTFestivalsAazad Staff
Ganesh Chaturthi
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इस साल गणेश चतुर्थी 13 सितंबर से आरंभ हो रही है, जो 24 सितंबर तक चलेगी। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को प्रायः पूरे भारत में इसे बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। गणेशोत्सव को महाराष्ट्र में व्यापक स्तर पर मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी से जुड़ी कथा -

भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद पार्वती ने स्नान करते समय अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसे सतीव कर दिया। उसका नाम उन्होंने गणेश रखा। पार्वती जी ने गणेश जी से कहा- 'हे पुत्र! तुम एक मुद्गर लेकर द्वार पर जाकर पहरा दो। मैं भीतर स्नान कर रही हूं। इसलिए यह ध्यान रखना कि जब तक मैं स्नान न कर लूं,तब तक तुम किसी को भीतर मत आने देना।

उधर थोड़ी देर बाद भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वापस आए और घर के अंदर प्रवेश करना चाहा तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उसका सिर, धड़ से अलग करके अंदर चले गए।

शिवजी जब अंदर पहुंचे तो पार्वती जी ने उन्हें नाराज़ देखकर समझा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव नाराज़ हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का निवेदन किया।

तब दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा-'यह दूसरी थाली किस के लिए लगाई है?' इस पर पार्वती जी बोली अपने पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।यह सुनकर शिवजी को आश्चर्य हुआ और बोले- 'तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? यह सुन कर भगवान शिव चौक गए और उन्होने कहा कि जो बालक बाहर पहरा दे रहा था मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है।

यह सुनकर पार्वतीजी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने शिवजी से पुत्र को पुनर्जीवन देने को कहा। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटित हुई थी। इस दिन को पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाता है।

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