होली से जुड़ी पोराणिक कथाएं

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होली से जुड़ी पोराणिक कथाएं

क्यों जलाई जाती है होलिका ?
Feb 28, 2018, 1:56 pm ISTFestivalsAazad Staff
Holi
  Holi

होली का त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है और होली के दिन हर कोई रंगों में रंग जाता है जिसके नज़ारे देखने में वाकई अद्भुत और प्रसन्न करने वाले होत है। वैसे तो हमारे देश में हर त्यौहार मनाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक, ऐतिहासिक या पौराणिक महत्व जरुर रहता है जिन परम्पराओ का पालन हमारे देश में शदियों से चला आ रहा है।

होली के त्यौहार की शुरुआत वैसे तो माँ सरस्वती के पूजा वाले दिन (बसंत पंचमी) से ही शुरू हो जाती है बसंत पंचमी के ही दिन जगह जगह होलिका की स्थापना की जाती है जो की होली के ठीक एक दिन पहले होलिका के त्यौहार के रूप में होलिकादहन होता है।

हिंदूओं में होलfका दहन व होली का महत्व -

प्रह्लाद और होलिका का प्रसंग तो लगभग सभी लोग जानते हैं। माना जाता है कि होली पर्व का प्रारंभ प्रह्लाद और होलिका से जुड़ा है। दोनों की कथा विष्णु पुराण में उल्लिखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से, न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी, परन्तु पुत्र प्रह्लाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बहुत यातनाएं दीं परन्तु उसने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को प्रह्लाद का अंत करने के लिए प्रह्लाद सहित आग में प्रवेश करा दिया परन्तु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। बस प्रह्लाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।


 मान्यता यह भी है कि पुराने समय में एक राजा हुए करता था उनका नाम था राजा पृथु। उनके समय में एक राक्षसी थी ढुंढी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा। न ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा लेकिन शिव के एक श्राप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी।  राजा को ढुंढी को खत्म करने के लिए राजपुरोहित ने एक उपाय बताया कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और गर्मी, क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखें और जलाए, मंत्र पढ़ें और अग्रि की परिक्रमा करें तो राक्षसी मर जाएगी। हुआ भी ऐसा ही इतने बच्चे एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्रि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज-मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी।

होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अहंकार की, अहं की, वैर-द्वेष की, ईर्ष्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम। राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम की मिशाल भारत में दी जाती है ठिक उस तरह से शानदार होली का अगर आपको मजा लेना है तो ब्रीज व मथुरा की होली पूरे भारत वर्ष में मशहूर है।

होलिका पूजन में इस्तमाल होने वाली वस्तुए -

होलिका पूजन करने के लिए गोबर से बनी होलिका और प्रहलाद की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच या सात प्रकार के अनाज, नई गेहूं और अन्य फसलों की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना अनिवार्य माना जाता है. इसके साथ ही बड़ी-फूलौरी, मीठे पकवान, मिठाईयां, फल आदि भी पूजा के दौरान चढ़ाए जाते हैं।

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