Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 08:07 AM IST
24 एकादशी में सबसे शुभ और मंगलकारी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवोत्थान एकादशी मानी जाती है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, देवप्रबोधिनी एकादशी और डिठवन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
देवउठनी एकादशी को लेकर हिंदू पूराणों में ये मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जो पिछले 4 महीनो से क्षीर सागर में सोए हुए थे वह जागते हैं। भगवान के जागते ही 4 महीनों से रूके हुए सभी तरह के मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान के आगमन की खुशी में उनकी पत्नी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। आज के दिन घर के सभी लोगों को फलाहारी व्रत रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन व्रत करने से भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और दुख एवं दरिद्रता दूर होती है। इसके साथ ही एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा से जन्म जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं।
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के साथ इस दिन तुलसी जी का शालिग्राम से विवाह भी कराया जाता है। अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है।
तुलसी विवाह विधि
संध्या समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह में जाने के लिए होते हैं।
तुलसी जी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर के बीच में रखें।
तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप लगाएं।
तुलसी देवी पर सारी सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं
शालीग्राम जी को तुलसी जी के पास ही स्थान दें।
शालीग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जाती है।
तुलसी और शालीग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
गन्ने के मंडप पर हल्दी का लेप कर, उसका पूजन करें।
मंगलाष्टक का पाठ अवश्य करें।
देवउठनी एकादशी के दिन ना करें ये काम -
आज के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से मनुष्य रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म लेता है।
आज के दिन धूम्रपान या कोई भी नशाकरने से बचे ।
वहीं, इस दिन जहां तक हो सके सत्य बोलने का प्रयास करें।
इस दिन पति-पत्नी को ब्रह्राचार्य का पालन करना चाहिए।
किसी को कठोर शब्द नहीं कहना चाहिए। लड़ाई-झगड़ा से बचना चाहिए।
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