गोल्ड मूवी रिव्यू: अक्षय कुमार की आजादी दिवस की पेशकश कार्य, भावनात्मक है और दर्शकों को अपने नाटक से समृद्ध रखता है।

Saturday, Nov 23, 2024 | Last Update : 05:42 AM IST

अक्षय कुमार की फिल्म 'गोल्ड': देश पर गर्व कराने वाली ,दर्शकों को अपने नाटक से समृद्ध रखता है

असली घटनाओं के आधार पर फिल्म बनाने में बॉलीवुड के कमजोर रिकॉर्ड, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गोल्ड तथ्य की तुलना में अधिक कल्पना है। अवधि नाटक खूबसूरती से किया जाता है, और अनुमानित स्पोर्ट्स फिल्म ट्रॉप्स अंडरगॉग ऊपर आने के बावजूद, संघर्ष सुलझाए जा रहे हैं, फिल्म टेम्पो को बरकरार रखती है।
Aug 17, 2018, 2:37 pm ISTEntertainmentAazad Staff
फिल्म 'गोल्ड'
  फिल्म 'गोल्ड'

'गोल्ड' जोश से भरे इस टीम के सफर को दिखाती है जिसने ब्रिटेन के 200 सालों की गुलामी के आगे अपना झंडा बुलंद किया। फिल्म की कहानी 1936 से शुरू होती है जब भारतीय हॉकी टीम ने बर्लिन ओलिंपिक्स में लगातार तीसरी बार गोल्ड जीता था। तब यह टीम ब्रिटिश इंडिया टीम कहलाती थी और इसे ब्रिटिश राज चलाता था। टीम के एक बंगाली जूनियर मैनेजर ने आजाद भारत की टीम को गोल्ड दिलाने का संकल्प लिया। उसका सपना 1948 में ब्रिटेन की धरती पर भारतीय ध्वज लहराने का था। जब पहली बार अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर भारतीय तिरंगा फहराया। यह ऐसी हकीकत है, जिसके सच होने के पीछे कई अफसाने हैं। रीमा ने उन्हीं अफसानों और सपनों को जोड़ कर फिल्म रची है।

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धोती पहने हुए टीम मैनेजर के रूप में अक्षय कुमार ने अपने किरदार से खूब हंसाया है, वहीं वह तुरंत नाटकीय और इमोशनल सीन पर भी आसानी से स्विच कर जाते हैं। कुणाल कपूर ने पहले हॉकी प्लेयर और फिर हॉकी टीम के कोच के रूप में शानदार प्रदर्शन किया है। विनीत कुमार का काम भी दमदार है। अमित साध का किरदार भी काफी अच्छा है जो टीम के उपकप्तान रहते हुए जिंदगी के पाठ सीखते हैं। एक गुस्सैल प्लेयर के रूप में सनी कौशल ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है। मॉनी राय ने बंगाली पत्नी का अपना छोटा सा किरदार असरदार तरीके से निभाया है। 'गोल्ड' सिर्फ हॉकी पर बनी एक फिल्म नहीं है बल्कि एक पीरियड फिल्म है जो उस दौर को जीवंत करती है जिसे काफी पहले भुलाया जा चुका है। यह विभाजन की दर्दनाक घटना को भी दर्शाती है जिसने बड़ी क्रूरता के साथ देश को दो भागों में बांट दिया। रीमा कागती ने गहरे मायनों वाली इस कहानी को मनोरंजक तरीके से पेश किया है। यह फिल्म हमें इतिहास के उस दौर में ले जाती है जिसके बारे में कम ही बात होती है। सभी कलाकारों का प्रदर्शन शानदार है।

इमोशनल एंड पर फिल्म काफी दमदार है क्योंकि कुछ लोग अपने निजी विरोधों को दूर रखकर भारत की जीत के लिए मिलकर प्रयास करते हैं। मैच का अंत जानते हुए भी आप पूरे मैच के दौरान रोमांच महसूस करेंगे और भारतीय टीम के लिए चीयर करेंगे। फिल्म की एडिटिंग कुछ बेहतर हो सकती थी और कहानी में 'चढ़ गई' और 'नैनो ने बांधी' गाने की जरूरत नहीं थी।

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