गणित में पायथागोरस प्रमेय (Pythagoras Theorem) एक विषय है जिसे छोटी कक्षा से ही बच्चो को सिखाया जाने लगता है लेकिन क्या आप जानते है जिस पायथागोरस प्रमेय (Pythagoras Theorem) को आप बचपन से पढ़ते आ रहे है उसकी शुरुआत कहा से और किसने की? शायद आपमें से ज्यादा तर लोगों का जबाव यही होगा कि इस थ्योरम की खोज पायथागोरस ने ही की लेकिन यह कम लोगों को ज्ञात होगा कि वास्तव में? इसकी रचना पायथागोरस ने नहीं बल्कि ऋषि बौधायन ने की थी। पायथागोरस की रचना किए जाने से २५० वर्ष पहले इस थ्योरम की खोज ऋषि बौधायन ने कर ली थी।
ऋषि बौधायन ने अपनी पुस्तक शुल्बसूत्र में यज्ञ की वेदियों के सही तरीके से बनाने के लिए कई र्फामूले और माप दिए थे। शुल्बसूत्र में यज्ञ ? वेदियों को नापना, उनके लिए स्थान का चुनाव तथा उनके निर्माण आदि विषयों का विस्तृत वर्णन है।
शुल्बसूत्र के अध्याय १ का श्लोक नंबर १२ कुछ इस तरह से है ?
दीर्घचातुरास्रास्याक्ष्नाया रज्जुः पार्च्च्वमानी तिर्यङ्मानीच | यत्पद्ययग्भूते कुरुतस्तदुभयं करोति ||
आप को जानकार हैरानी होगी कि इस श्लोक का मतलब वही है जो पाईथागोरस थ्युरम का है।
इसका मतलब यही है कि पाइथागोरस से भी कई साल पहले भारतीयों को इस प्रमेय की जानकारी थी और इसके सबसे पहले खोजकर्ता ऋषि बौधायन थे।
अब आपके दिमाग में ये सबाल आ रहा होगा कि जब ऋषि बौधायन ने इसकी रचना व खोज की तो इसका श्रेय पायथागोरस को कैसे मिला? आज़ादी के बाद जिन लेखकों को भारत का इतिहास और अन्य विषयों पर किताबें लिखने का काम सौंपा गया था वह सभी अंग्रेज़ों की शिक्षा पद्धति से पढ़े हुए थे। जैसा उन्होंने पढ़ा था वैसा ही लिखते थे।
वर्तमान में गणित और विज्ञान से संबंधित जितनी भी किताबें है वह मूल रूप से पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा लिखी गई थी। उन पश्चिमी वैज्ञानिकों को उनकी प्राचीन ग्रीक सभ्यता, उसके वैज्ञानिकों का और उनकी खोज़ों का तो पता था पर शायद प्राचीन भारत के ज्ञान के बारे में उन्हें इतनी जानकारी नही थी। इसीलिए उनकी किताबों में प्राचीन ग्रीक वैज्ञानिकों और उनकी खोज़ों का वर्णन तो मिलता है पर प्राचीन भारत के किसी वैज्ञानिक का नहीं।
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जाने कौन थे पाइथागोरस-
पाइथागोरस प्राचीन यूनान के एक महान गणितज्ञ और दार्शनिक (Philosopher) थे। पाइथागोरस का जन्म पूर्वी एजीएन के एक यूनानी द्वीप ?समोस? में हुआ था। उनकी मां का नाम पियिथिअस और पिता का नाम मनेसाचर्स था जो लेबनान स्थित टायर के एक व्यापारी थे। जो रत्नों का व्यापार करते थे।
पाइथागोरस के जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। उनके बारे में कहा जाता था कि उनका बचपन काफी खुशहाल था। उनके दो या तीन भाई थे। पाइथागोरस युवावस्था में दक्षिण इटली में क्रोटन जाकर रहने लगे थे | अपना कुछ समय उन्होंने मिस्त्र में पुजारियों के साथ भी गुजारा और उनसे विभिन्न ज्यामितीय सिद्धांतो का अध्ययन किया | इसी अध्ययन का परिणाम उनकी प्रमेय ? पायथागोरस प्रमेय के रूप में सामने आयी , जो दुनिया भर में आज भी पढाई जाती है |
मिस्त्र से वापस इटली लौटकर उन्होंने एक गुप्त धार्मिक समाज की स्थापना की | उन्होंने क्रोटोन के सांस्कृतिक जीवन में सुधार लाने के प्रयास किये | इस क्रम में लोगो को सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया | उन्होंने लडके-लडकियों के लिए एक विद्यालय भी खोला | इस विद्यालय के नियम बहुत सख्त थे | विद्यालय के अंदरुनी हिस्से में रहने वाले लोग शाकाहारी भोजन करते थे और उनकी कोई निजी सम्पति नही होती थी | वहीं विद्यालय के बाहरी हिस्से में रहने वाले लोग माँसाहार कर सकते थे और निजी सम्पति भी रख सकते थे। इस विद्यालय के अंदरुनी भाग में रहने वाले लोगो का नाम दुनिया के पहले सन्यासी के रूप में इतिहास में दर्ज है |
पायथागोरस (Pythagoras) ने सादा अनुशासित जीवनयापन किया | अपने दर्शन में उन्होंने धर्माचरण ,समान्य , भोजन ,व्यायाम , पठन-पाठन ,संगीत के अनुसरण का उपदेश दिया | जीवन के आखिरी दिनों में क्रोटोन के कुछ अभिजात लोग उनके दुश्मन बन गये और उन्हें क्रोटोन छोडकर मेटापोंटम में शरण लेनी पड़ी | लगभग ९० साल की उम्र में ४५० ईसा पूर्व के आसपास उनकी मृत्यु हो गयी |
पायथागोरस उनमे से थे जो यह मानते थे की पृथ्वी गोल है। और सभी ग्रह किसी केंद्र के चारों ओर चक्कर लगाते है। इसके साथ ही उनका यह भी मानना था कि मानव जीवन और मानव शऱीर एक स्थिर अनुपात है। इनमें कुछ भी अधिक व ज्यादा हो जाए तो असंतुलन पैदा होता है। जिससे मानव शरीर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।