महाभियोग का अर्थ-
महाभियोग यानी ''इमपीचमेंट' शब्द का लैटिन भाषा से लिया गया है इसका अर्थ है पकड़ा जाना। ये शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। हालांकि इस वैधानिक प्रक्रिया की शुरूआत ब्रिटेन से मानी जाती है। यहां 14वीं सदी के उत्तरार्ध में महाभियोग का प्रावधान किया गया था।
महाभियोग राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों को हटाने की एक प्रक्रिया है। इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है।सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज पर कदाचार, अक्षमता और भ्रष्टाचार को लेकर संसद के किसी सदन में जज के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है।
सदन के सभापति या अध्यक्ष जो समिति बनाते हैं, वो जज पर लगे आरोपों की जांच कर अपनी रिपोर्ट सौंपती है, जिसके बाद जज को बचाव करने का मौका दिया जाता है। सभापति को जांच रिपोर्ट में अगर आरोप सही साबित पाए जाते हैं तो बहस प्रस्ताव मंजूरी देते हुए सदन में वोटिंग कराई जाती है और इसके बाद ससंद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से जजों को हटाने का प्रस्ताव पारित हो जाता है। वहीं राष्ट्रपति के पास जज को हटाने की आखिरी शक्ति है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जज को हटाया जाता है।
बता दें कि माहभियोग प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम लोकसभा से 100 सदस्यों की सहमती होनी चाहिए एवं उनके हस्ताक्षर होने चाहिए इस प्रकार से राज्यसभा से 50 सदस्यों की सहमती होनी अनिवार्य होती है।
इनके खिलाफ आया था महाभियोग का प्रस्ताव-
सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ 1993 में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था लेकिन यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया।
2011 में कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमेत्र सेन के खिलाफ महाभियोग लाया गया। लेकिन उन्होंने प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही पद से इस्तीफा दे दिया।
सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्यन्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी की गई हालांकि प्रक्रिया शुरु होने से पहले ही उनहोने इस्तीफा दे दिया था।
गुजरात हाईकोर्ट के न्याधीश जे.बी. पर्दीवाला के खिलाफ वर्ष 2015 में राज्यसभा के 53 सदस्य महाभियोग का प्रस्ताव लाए थे।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जज नागार्जुन रेड्डी पर महाभियोग लाया गया था।