Monday, Dec 23, 2024 | Last Update : 09:35 PM IST
२००७ मे वे विश्व विजेता बनकर दुनिया के पहली नंबर की कुर्सी पर बैठने मे सफल रहे | २००८ - २०१० की विश्व शतरंज चैम्पियनशिप मे आनंद की बादशियत कायम रही और २०१२ मे आनंद ने चैम्पियनशिप जीतने को जीतकर शतरंज शेहेंशाह बनने मे कोई कसर नही रेखी | आनंद का दिमाग कितना तेज है इसका अंदाजा इससे से लगाया जा सकता है जब २००३ मे कंप्यूटर को भी मात दे दी वर्ल्ड रैपिंग शतरंज मे २५ मिनट की बाजी होती है और हर चाल चलने के लिये १० सेकंड का वक़्त यहाँ पर आनंद की बादशियत कायम रही और वे चम्पिओं बने |
चैम्पियनशिप | दिसम्बर १९६९ मे चेन्नई मे जन्मे आनंद को तमिल ,हिंदी , अंग्रजी ,फ्रेंच , जेर्मनी और स्पैनिश भाषा का अच्छा खासा ज्ञान है और वेह सारी भाषाये धाराप्रवाह बोलते है | आनंद को पड़ना , तैरना और संगीत सुनना पसंद है | आनंद के बेटे का नाम अर्विल है वेह साल के १२ महिना मे ८ महीने शतरंज खेलने मे व्यस्त रहते है |
आनंद को मिले अवार्ड :-
आनंद १९८५ मे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया | १९८७ मे पदमश्री से | १९९१ -१९९२ मे राजीव गाँधी कहल रतन अवार्ड और २००७ सात मे पदमभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया
अमेरिका राष्ट्रपति ओबामा जब भारत दोरे पर आये थे तब प्रधान मंत्री ने ख़ास लोगो को भोज पर आमंत्रित किया था और इसमे विश्वनाथ आनंद को भी आमंत्रित किया गया था इस मान से अनुमान लगाया जा सकता है की देश मे आनंद का कद कितना ऊचा है | यकीनन आनंद की ये कामयाबी सचिन तन्दुलकर के १०० अंतरराष्ट्रीय शतक के समान है |
विश्वनाथन आनंद यानी विशी आनंद हमारे आपके चेहरे चेस खिलाडी तो है ही अब उन्ही का नाम एक गृह को भी दे दिया गया है । मंगल और बृहस्पति के बीच की शुधरा गृहों की पट्टी ( ऐस्ट्राइट बेल्ट ) के नन्हे गृह का नाम अब ४५-३८ विशी आनंद रख दिया गया है अमेरिका में स्थित इंटरनेशनल कमिटी आफ अस्ट्रॉंमर्स ने यह फैसला लिया पांच बार के विश्व चैंपियन आनंद की उपलब्दियो को सलाम किया है । यह संस्था इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन का अंग है ।
आनंद यह सम्मान पाने वाले तीसरे शतरंज खिलाडी है । इससे पहले अलेक्सेंडर अलेखिने और अनातोली कपोराव के नाम पर गृहों का नामकरण हो चुका है ।आनंद को अंतररिक्ष विज्ञानं में गहरी रूचि है ।
बचपन में उन्होने कॉल सगण की विख्यात पुस्तक 'कॉस्मॉस' पड़ी थी । तभी से अंतररिक्ष का रहस्य उन्हें आकृषित करता है ।
आनंद के पास अपना एक छोटा टेलिस्कोप और कई ताकतवर दूरबीन है । अंतरिक्ष विज्ञान की नवीनतम खोजो पर उनकी नज़र रहती है ।
आनंद के नाम से जाने वाले शुधरा गृहों की पहचान १० अक्टूबर १९८८ को जापान के वैज्ञानिक केन्जो सुजकी ने की थी। आनंद के सामान में नामकरण का पूरा भार इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ अस्ट्रॉमरस के सदस्य माइकल रूदन को जाता है ।उन्होने सोचा कि गृह को १५ वे विश्व चैंपियन (आनंद ) दिया जाए ।
आनंद वर्ष २००७ से २०१३ तक शतरंज की दुनिया के बेताज बादशाह रहे । यहाँ तक पहुचने लिए उन्होने कई रूसी महारथियों को मात दी थी । आनंद की बदौलत भारत में शतरंज काफी लोकप्रिये हुआ । जगह -जगह शतरंज क्लब खोले और देश को कई महान मास्टर मिले ।