Wednesday, Nov 20, 2024 | Last Update : 12:07 PM IST
संत कबीर दास का नाम साहित्य जगत में विशेष स्थान रखता है। उनका सूफियाना अंदाज और रूढ़िवादियों के खिलाफ कट्टर रवैया उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। वे एक मशहूर कवि व संत के रूप में जाने जाते है। ऐसा कहा जाता है कि संत कबीरदास को शिशु अवस्था में उनकी मां ने लोक लाज के डर से उन्हें छोड़ दिया था। क्योंकि कबीर की मां एक विधवा ब्राह्मणी थीं। कबीर की मां ने उन्हें एक तालाब के किनारे छोड़ा था।
तालाब के किनारे से गुजर रहे एक जुलाहे दंपत्ति को पानी में बहती एक टोकरी में शिशु दिखा। वो बालक कबीर दास थे। जुलाहा दंपत्ति नीरू व रीमा ने शिशु को टोकरी से निकालकर अपने पास रख लिया, व उसका पालन-पोषण किया।
संत कबीर दास एक मुस्लिम परिवार में पले-बढे़। उन्होंने जीवन चलाने के लिए अपने माता-पिता के पैतृक व्यवससय बुनाई को अपनाया। वह जूल्हा बनकर कपड़ों की बुनाई करते थे। हिंदू भक्ति गुरू रामानंद से काफी प्रभावित हुए थे। स्वामी रामानंद को संत कबीर अपना गुरु मानते थे।
कबीर दास ने समाज सुधार के लिए कई कविताएं व लेख लिखे हैं, इनमें सबसे प्रमुख बीजक ग्रंथ है। ये ग्रंथ तीन भागों, साखी, सबद व रमैनी में बंटा हुआ है। इसके अलावा उन्होंने गुरू-महिमा, ईश्वर महिमा, सतसंग महिमा व माया आदि दार्शनिक जीवनी लिखी है।
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