राम प्रसाद बिस्मिल जयंती से जुड़ी खास बाते…

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राम प्रसाद बिस्मिल जयंती से जुड़ी खास बाते…

राम प्रसाद बिस्मिल क्रांतिकारी के साथ साथ कवि और शायर भी थे।
Jun 11, 2018, 2:37 pm ISTShould KnowAazad Staff
Ram Prasad Bismil
  Ram Prasad Bismil

राम प्रसाद बिस्मिल स्वतंत्रता सेनानीयों में से एक थे। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता मुरलीधर शाहजहांपुर नगरपालिका में कार्यरत थे।

राम प्रसाद बिस्मिल एक महान कवी और शायर थे। उनकी कविताएँ क्रांतिकारियों में आजादी के लिए एक अलग सा जोश भरती थी। उनके द्वारा लिखी कविता ‘सरफरोशी की तमन्ना आज हमारे दिल में है’ आज भी कई नौजवानों में आक्रोश का शैलाब ला देती है। राम प्रसाद बिस्मिल ने उर्दू और हिंदी में अज्ञात, राम और बिस्मिल नाम से कविताएं लिखीं लेकिन वे प्रसिद्ध बिस्मिल कलमी नाम से जाने गए।

जिसने महज 30 साल की उम्र में देश के लिये इतना कुछ कर दिया कि आज 119 साल बाद भी उन्हें याद किया जाता है।
19 दिसंबर, 1997 को भारत सरकार द्वारा उनकी 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक यादगार डाक टिकट जारी किया गया था।

काकोरी कांट से जुड़ा किस्सा -

राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी नामक स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संग्रहित धनराशि को लूटा। उन्होंने ट्रेन के गार्ड को बंदूक की नोक पर काबू कर लिया। गार्ड के डिब्बे में लोहे की तिजोरी को तोड़कर आक्रमणकारी दल चार हजार रुपये लेकर फरार हो गए। काकोरी कांड में अशफाकउल्लाह, चन्द्रशेखर आजाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। इस काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन की नींद उड़ा दी।

इस कांड के बाद ब्रटिश सरकार ने 40 लोगों को गिरफ्तार किया। इस कांड में  पुलिस ने उन्हें भी पकड़ा, जो इसमें शामिल नहीं थे। गोविंद बल्लभ पंत, चंद्र भानु गुप्त और कृपा शंकर हजेला ने क्रांतिकारियों का केस लड़ा, लेकिन हार गये। मामला 16 सितंबर 1927 को चार लोगों को फांसी की सजा सुनायी गई।

अंतिम सुनवाई के लिये लंदन की प्रिविसी काउंसिल भेजा गया। 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दे दी गई। फांसी देने से पहले जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि मैं ब्रिटिश शासन का अंत देखना चाहता हूं। उसके बाद उन्होंने वैदिक मंत्र का जाप किया और फांसी के फंदे पर झूल गए।   उसी दिन अशफाख उल्लाह खां को फैजाबाद जेल में और रौशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई।

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