Friday, Dec 27, 2024 | Last Update : 08:14 AM IST
घरेलू हिंसा अधिनियम २००५ में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया नियम है।जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है। इस अधिनियम को कानूनी तौर पर २६ नवंबर २००६ को पारित किया गया था। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा संचालित किया जाता है।
शहर में महिला बाल विकास द्वारा जोन के अनुसार आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनते हैं और पूरी जांच पड़ताल करने के बाद प्रकरण को न्यायालय भेजा जाता है।
इस नियम के तहत महिलाओं के साथ कुटुंब (घर) में होने वाली हिंसा, शारीरिक पीड़ा, अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और प्रतारणा आदि को शामिल किया गाया है।
इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी व महिलाओं के हर रूप और किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को भी शामिल किया गया है। इस अधिनियम में न्याय की अवधि ६ माह दी गई है। लेकिन ये जानकार आपको आश्चर्य होगा कि इस मामले में केस को कोर्ट में फाइल करने में ही ६ महीने लग जाते है। कुछ तो ऐसी भी महिलाए होती है जो अधिनियम की कुछ कमियों की वजह से तो कुछ धन और जानकारी के अभाव में इसका प्रयोग नहीं कर पाती हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम में होने चाहिए ये संशोधन
१. न्याय जल्दी दिलाने की बजाय इसमें प्रयास शब्द का बहुत इस्तेमाल किया जाता है जिसके कारण दो माह की बजाय पेशी बढ़ती जाती है।
२. इस अधिनियम को संसोधिक कर महिलाओं के संरक्षण के लिए कानून भी पारित किया जाना चाहिए ।
3. इस तरह की शिकायतों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए।
4. महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
कौन करा सकता है शिकायत दर्ज?
घरेलु हिंसा के मामले में पीड़िता खुद शिकायत कर सकती है। इसके साथ ही अगर आप पीड़ित नहीं हैं तो भी आप संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलू हिंसा की कोई घटना घटित हुई है या हो रही है या जिसे ऐसा अंदेशा भी है कि ऐसी घटना घटित हो सकती है, वह संरक्षण अधिकारी को सूचित कर सकता है। यदि आपने सद्भावना में यह काम किया है तो जानकारी की पुष्टि न होने पर भी आपके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगी।
सुरक्षा अधिकारी के अलावा पीड़ित ‘सेवा प्रदाता’ से भी संपर्क कर सकती है, सेवा प्रदाता फिर शिकायत दर्ज कर ‘घरेलू हिंसा घटना रिपोर्ट’ बना कर मजिस्ट्रेट और संरक्षण अधिकारी को सूचित करता है।
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