अब्बक्का रानी सोलहवीं सदी की निडर योद्धा, जिन्होने पुर्तगालियों को कई बार पछाड़ा

Friday, Apr 19, 2024 | Last Update : 10:57 AM IST


अब्बक्का रानी सोलहवीं सदी की निडर योद्धा, जिन्होने पुर्तगालियों को कई बार पछाड़ा

‘अभया रानी’ के नाम से भी प्रसिद्ध है अब्बक्का महादेवी। अब्बक्का महादेवी पहली ऐसी महिला थी जिन्हे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी माना गया।
Apr 16, 2018, 2:33 pm ISTShould KnowAazad Staff
Abbaka Rani
  Abbaka Rani

भारत एक ऐसा देश जहां अंग्रेजों ने 200 साल तक राज किया। गुलामि की जंजीरों से खूद को आजाद करने के लिए हमारे देश के कई वीरों व सुरवीरों ने आजादी की जंग में अपना जीवन बलिदान कर दिया इस बलिदान में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया लेकिन कई ऐसे नाम है जिनसे हम आज भी अंजान है आज इस लेख के जरिए हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे है जो किसी शूरवीर योद्धा से कम नहीं मानी जाती थी। इन्होने सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों के साथ अपनी आज़ादी के लिए युद्ध किया।

इस वीरांगना का नाम 'अब्बक्का रानी’/ 'अब्बक्का महादेवी' था। ये तुलुनाडू की रानी थीं और चौटा राजवंश से ताल्लुक रखती थीं।  चौटा राजवंश के लोग मंदिरों का शहर 'मूडबिद्री' से शासन करते थे और इसकी राजधानी 'उल्लाल' था जो एक बंदरगाह शहर था।

अब्बक्का ने सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया। चौटा राजवंश मातृ सत्ता की पद्धति से चलने वाला राजवंश था, इसलिए अब्बक्का के मामा, तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल की रानी बनाया।

पुर्तगालियों ने उल्लाल शहर पर राज करने के लिए कई बार हमले किए थे लेकिन उन्हे कामियाबी नहीं मिल सकी। रानी अब्बक्का ने लगभग चार दशकों तक पुर्तगालियों को अपने शहर से खदेड़ कर भगाया था। उनकी बहादुरी व साहस को देखते हुए उन्हे ‘अभया रानी’ के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि धनुर्विद्या तथा तलवारबाजी में उनका मुकाबला करने वाला कोई नहीं था। उनके पिताजी ने उन्हें हमेशा उत्साहित किया जिसके फलस्वरूप वो हर क्षेत्र में पारंगत होती गईं। आज झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का इतिहास हर कोई जानता है लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के इतिहास से 300 वर्ष पूर्व अब्बक्का महादेवी का इतिहास लोग भूल चुके है। आपको बता दें कि अब्बक्का महादेवी पहली ऐसी महिला थी जिन्हे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी माना गया था।

अब्बक्का महादेवी के वैवाहिक जीवन के बारे में कहा जाता है कि उनका विवाह ज्यादा साल तक ठिक न सका और वह अपने पिता के घर वापस आ गई थी।

1526 में, पुर्तगाली ने मंगलौर बंदरगाह पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद उनका अगला निशाना उल्लाल नगर पर था। बता दें कि उल्लाह एक समृद्ध बंदरगाह था और अरब एवं पश्चिम के देशों के लिए मसाले के व्यापार का केंद्र था। लाभप्रद व्यापार केंद्र होने के कारण पोर्तुगीज, डच तथा ब्रिटिश उस क्षेत्र पर एवं व्यापारी मार्गों पर नियंत्रण करने के लिए एक-दूसरे से टकराते रहते थे, लेकिन वे उस क्षेत्र में अधिक अंदर तक घुस नहीं पाए, क्योंकि स्थानीय सरदारों द्वारा होने वाला प्रतिरोध मज़बूत था।

उल्लाल पर पुर्तगालियों ने पहली बार आक्रमण  1556 में किया था, इस लडाई को पुर्तगाली सेना ने एडमिरल डॉन अलवारो डी सिल्वीरा के अंतर्गत लड़ा इस लड़ाई में रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों ने हार का मजा चखाया। पुर्तगालियों ने चार बार उनल्लाल पर हमला किया था चारों बार उन्हे निराशा ही हाथ लगी।

सन 1851 में, 3000 पुर्तगाली सैनिकों ने पहली बार उल्लाल पर हमला बोला था। ये हमला नगर पर अचानक से किया गया था। रानी अब्बाका अपने परिवार के साथ मंदिर की यात्रा से लौट रही थीं और उन्हें पकड़ लिया गया, लेकिन उन्होंने तुरंत अपने घोड़े पर सवारी की और अपने सैनिकों के साथ मिलकर उनपर एक भयंकर आतंकवादी हमला कर दिया।

उस रात में पुर्तगाली के कई जहाजों को जला दिया गया, रानी अबाबाका क्रॉस फायर में घायल हो गयी थी और कुछ रिश्वतखोरो की मदद से दुश्मन ने उन पर कब्जा कर लिया था। अंत तक, निडर रानी विद्रोहियों से लडती रही और उनकी कैद में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। हालांकि, उनकी विरासत को उनके जैसी भयंकर और बहादुर बेटियों ने बचाए और बनाये रखा और पुर्तगाली से तुलु नाडू की रक्षा जारी रखी।

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