Sunday, Dec 22, 2024 | Last Update : 02:02 PM IST
Hyderabad was constructed by Sultan Quli Qutb Shah on the plain land of south of river Musi with utmost grandeur and facilities. The city was designed on the grid pattern and the Charminar was constructed as a central node that marked the four roads that jutted out from its four portals. Muhammad Quli Qutb Shah built the Charminar in 1591 to commemorate the eradication of a dreaded plague that had ravaged the city. The fullness of gardens on each side surrounded by an encloses gave this city a new name Bhagnagar( City of Gardens) . Within the boundary, the Jilukhanah (Four Gateways) was constructed with one gate in each direction for different royal complexes.
The water for the city was supplied by tank located in south-east direction (Mir Jumla tank). It is said that the supply of water was through ceramic pipe to the royal palace by Jalpalli tank. The City was full-Fledged with buildings including palaces mosques, hospitals, schools and rest-houses.
Hyderabad is famous for its authentic dum biryani and Paradise Food Court is one of the best places to try it. This biryani is prepared by sealing the edges of the cooking vessel with keep the flavours intact. Different spices and condiments along with succulent meat give it a superior, tangy taste.
A large manmade lake built by Hazrat Hussain Shah in 1562. Hussain Sagar is an ideal sunset spot. This lake has a huge monolithic statue of the Buddha at the center.
Qutb Shahi Dynasty (क़ुतुब शाही राजवंश)
कुतुबशाही राजवंश की स्थापना सुल्तान कुली कुतबुलमुल्क ने सन १५१८(1518) की आरम्भ में वह बहमनी सुल्तान के राजदरबार में थे और बाद में बहमनी शासन में ही तेलेगांना का सूबेदार बन गया बहमनी सुल्तान मृत्यु के बाद सन १५१८(1518)में , उसने स्वं को शासक घोषित केर दिया और कुतुबशाही राजवंश 1518-1687 (१५१८-१६८७ ई ), की स्थापना की । उनके द्वारा शाषित गोलकुण्डा सम्राज्य में तेलंगाना ,आंध्र , कर्नाटक का उत्तरी भाग ,मराठवाड़ा और बेरार में सम्लित हुए । राजवंश में मुख्यता ७ सुल्तानों ने कुल १७१ वर्षों तक शासन किया । अंतिम सुल्तान अब्दुल हसन ताना शाह के कालमें मुगल शासक औरंजेब ने सन १६८७(1687) मे गोलकुण्डा किले पर अधिकार क्र उनके राज्य को मुगल साम्राज्य में मिला लिया ।
Chaarminar (चारमीनार)
हैदराबाद को बसते समय सबसे पहले चार मीनार का निर्माण किया गया । यह ईमारत हिजरी सम्वत के दिव्तीय सहस्त्र वर्ष के आरम्भ (१००० AH/१५९१-९२ CE) होने के उपलक्ष्य में निर्मित की गयी थी, इस दिन हिजरी कैलेंडर के अनुसार एक हजरावै वर्ष के पहले महीने मोहर्रम की पहली तारीख थी, इस दिन चन्द्रमा सिंह नक्षत्र में था और बृहस्पति अपने गृह में । फारस में प्रचलित नक्षत्र विज्ञानं के अनुसार, सिंह नक्षत्र राजसी योग तथा राजकीय शक्तियों का प्रतिक मन जाता है । सम्भवत यही कारण था कि सुलतान ने इस दिन चारमीनार रखी ।
चारमीनार की ऊपरी मंजिल मस्ज़िद है यह नाम वैभवशाली ईमारत को उसकी चार ऊँची मीनारों के कारण मिला है जो न केवल उसके सौंदर्य में वृधि करती है अपितू चार मीनारों के लिए यह ईमारत प्रसिद्ध भी है । ये चार मंजिला मीनारे भूमि-तल से १८४(184) फ़ीट ऊँची है । इनकी ऊपरी मंजिल तक पहुचने के लिये प्रतेक मीनार में १४९(149) सीढ़ियां है । ऐसा कहा जाता है कि मुग़ल काल में बहादुर दिल खान जब सूबेदार थे तब दक्षिण-पश्चमी मीनार बिजली गिरने से गयी थी तब ६०००० (60000) रुपये की लागत से इस मीनार की मरम्मत करायी गयी थी ।
Falaknuma palace (फलकनुमा महल)
हैदराबाद में फलकनुमा भारत के भव्य महलों में से एक है ,यहाँ से यह दूर पहाड़ी पर दिखाई देता है । इस महल का निर्माण नवाब विकर-उल-उमरा ने इटली के वास्तुकार के निर्देशेन में १९(19)वी सदी के उत्तर्रार्ध में करवाया था । यह महल वर्ष में बन कर पूर्ण हुआ । महल का भूविन्यास बिच्छू के आकार के समान है । इसमें इटली से आयातित संगमरमर का प्रयोग किया गया है । महल में २२०(220) शाही कमरे है । कमरों की खिड़कियों में प्रयुक्त भिन्न-भिन्न रंगों के काँच कमरे में रंग-बिरंगी आभा बिखरते है । महल को सुन्दर पेंटिंग और मूर्तियों से सजाया गया है । यह महल मेहमानो के ठहरने के लिये परय प्रयुक्त होता था ।
Mecca Masjid (मक्का मस्ज़िद )
हैदराबाद में सुप्रसिद्ध मक्का मस्ज़िद का निर्माण सुल्तान क़ुतुब कुली शाह ने सन १६१७(1617) में कराया और इसका नाम बैतूल अतीक रखा, यह मस्ज़िद यहाँ से देखी जा सकती है । ऐसा कहा जाता है कि सुल्तान ने कभी भी नवाज नही छोड़ी थी, इसलिए मस्ज़िद की नींव सुल्तान द्वारा राखी गयी थी । मस्ज़िद का निर्माड कार्य मुग़ल बादशाह औरगजेब के काल में सन १६९४(1694)में पूर्ण हुआ । इस मस्ज़िद के मुख्य मेहराव के कुछ पत्थर सुलतान द्वारा मक्का से मंगाए गए थे इसलिए यह मक्का मस्ज़िद के नाम से जानी जाती है । एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित इस मस्ज़िद में एक विशाल हाल है जिसके पश्चिम दिवार पर क़िबला मेहराव है तथा पांच-पांच मेहरावों की तीन पंक्तिया सम्पूर्ण हाल में है। मस्ज़िद के दोनों कोनो पर मीनारें है।
Bindri Art (आर्ट कला)
हैदराबाद बिंदरी के सजावटी समाज के लिये भी प्रसिद्ध है यह कला यहाँ मुख्यता सन १९१०(1910)में आयी । इस कला के उद्भव का श्रेय बहम जी सुल्तानों को दिया जाता है उनका शासन बिदर शेत्र में १४-१५ (14-15)वी शताब्दी में था । सभी प्रकार की शिल्पकलाओ में बिदरी का प्रमुख स्थान है । साचै में ढाल क्र बजाये गए धातु के बर्तन को जिनक से ऑक्सीकृत क्र काला रंग प्रदान किया जाता है जिस पर की गयी चाँदी की चमकती पचकारी विशेष आभा प्रदान करती है ।
Lad Bazar (लाड बाजार)
चार मीनार के पश्चिमी ओर रोनक और हलचल से भरी ये गलिया लाड बाजार कहलाती है । कहा जाता है कि सुल्तान क़ुतुब कुली शाह ने उनकी बेटी हयात बक्शी बेगम की शादी के अवसर पर यह बाजार स्थापित कराया था । जिससे नगों की जड़ऊ चुडिया बनायीं जाती है उसे लाड़ भी कहते है इसलिए यह बाजार लाड़ बाजार कहलाता है । समपुर्ण बाजार लाख की चूड़ियों, मोतियों और इतर की दुकानों से भरा पड़ा है । जो नए सौंदर्य , विभिन्न आकर्षक रंगों और भीनी-भीनी खुशबूओ से आपका मन मोह लेते है । आज भी चारमीनार के आस-पास जाने वाली खरीदारी में लाड बाजार का अपना ही महत्व है ।
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