Wednesday, Dec 25, 2024 | Last Update : 01:09 PM IST
सरोजनी नायडू (जिन्होने जगाई आज़ादी की अलख )
सरोजनी नायडू अपने देश को आज़ादी दिलाने के लिये कई इस्त्रियो ने कडा संघर्ष किया उनमे सरोजनी नायडू का अपना अलग ही स्थान है वह एक विदुषी और बहुआयामी व्यक्तित्व वाली स्वतंत्रता सेनानी थी | उनकी आवाज बेहद मधुर थी | इसी वजह से वह पुरे विश्व में भारत कोकिला के नाम से विख्यात थी |
सरोजिनी नायडू का जन्म १३ फरवरी १८७९ को हैदराबाद में हुआ था | इनके पिता अधोर नाथ एक विद्वान् थे तथा माता कवयित्री थी | बचपन में वह बेद्र्द मेघावी छात्रा थी | उनकी बुद्धिमता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है की मात्र १२वर्ष की उम्र में ही वह बहुत अच्छे अंको के साथ १२वि कक्षा की परीक्षा पास कर चुकी थी १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने 'लेडी आफ दी लेक ' शीर्षक कविता की रचना की वह १८९५ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये इंग्लैंड गई और पढई के साथ कविताए भी लिखती रही |
१९०५ में गोल्डेन थ्रेशोल्ड शीर्षक से उनकी कविताओ का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ था | इसके बाद उनके दूसरे और तीसरे कविता संग्रह 'बर्ड आफ टाइम ' तथा 'ब्रोकन विंग्स' ने उन्हे सुप्रसिद्ध काव्यित्री बना दिया |
देशप्रेम की धुन - १८९८ मे सरोजनी गोविंदराजुलू नायडू की जीवन संगिनी बनी |१९१४ मे इंग्लैंड मे वे पहली बार गाँधी जी से मिली और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिये समर्पित हो गई | एक कुशल सेनापति की भाती उन्होने अपनी प्रतिमा का परिचिय आन्दोलन , समाज सुधार और कांग्रेस पार्टी के संगठन मे दिया | उन्होने अनेक राष्ट्रीय आन्दोलन का नैत्रव्य किया और कई बार जेल भी गई | किसी भी तरह मुशकिल की परवाह छोडकर वह दिन - रात देशसेवा मे जुटी रहती थी |वह गाँव- गाँव घूमकर लोगो के बीच देशप्रेम का अलख जगाते हुई लोगो को देश के प्रति उनके कर्तव्य की याद दिलाती थी | उनके ओजस्वी भाषण जनता के हर्दिय को झक झोर्र देते थे | उनका भाषण सुनकर लोग देश पर अपना सर्वस्व नौओछावर करने को तैयार हो जाते थे | वह कई भाषाओ की प्रकांड विद्धमान थी | वह उपिस्थित जनसमोह की समझ के अनुरूप अंग्रेजी , हिंदी , बंगला व गुजरती मे भाषण देती थी | लन्दन की भी एक जनसभा मे इन्होने अपने भाषण से वहा उपिस्थित सभी श्रोतायो को मंत- मुग्ध कर दिया था |
योगदान
अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण १९२५ मे कानपूर मे हुई कांग्रेस अधिवेशन की वे अध्यक्ष बनी और १९३२ मे भारत की प्रतिनिधि बनकर दक्षिण अफ्रीका भी गई भारत की स्वंत्रता प्राप्ति के बाद वह उत्तर प्रदेश की राजपाल बनी | इसतरह उन्हे देश की पहली महिला राज्यपाल बनी | इस तरह उन्हे देश की पहली महिला राज्पाल होने का गौरव प्राप्त हुआ | उन्होने अपना सारा जीवन देश को सम्पर्तित कर दिया था | २ मार्च १९४९ को उनका स्वर्गवास हो गया लेकिन देश की आज़ादी मे उनके अमुल्लय योगदान को भूलाया नहीं जा सकता है |
Works Each year links to its corresponding "[year] in poetry" article:
1905 The Golden Threshold, published in the United Kingdom
1912 The Bird of Time: Songs of Life, Death & the Spring
1917 The Broken Wing: Songs of Love, Death and the Spring, including "The Gift of India"
1943 The Sceptred Flute: Songs of India, Allahabad:
1961 The Feather of the Dawn, posthumously published, edited by her daughter, Padmaja Naidu