Samarth Guru Shri Ramdas (समर्थ गुरु श्री राम दास)

Monday, Dec 23, 2024 | Last Update : 12:21 AM IST

Samarth Guru Shri Ramdas

समर्थ गुरु श्री राम दास,रामदास जी के बचपन का नाम नारायण था ,Samarath Gururamdas was a religious poet in Hindu Tradition in Maharastra (India)
Sep 21, 2010, 10:52 am ISTIndiansSarita Pant
Samartha Ramdas
  Samartha Ramdas

समर्थ गुरु श्री राम दास
रामदास जी के बचपन का नाम नारायण था | वह गंगाराम पंत के छोटे भाई थे | नारायण का जन्म  सन १६०८ इसवी मे चैत्र शुदी नवमी को सूर्य पंत और रानुदेवी के घर मे हुआ था | यही तिथि श्री राम के जन्म दिन की थी | इस लिये आपका नाम रामदास रखा गया | रामदास का मन औपचारिक पीडी  मे नही लगता था | उन्हे तो तालाब मे तेहैरना, पेड़ो  पर  चड़ना और इसी प्रकार की अन्य शैतानिया करना पसंद था | आपके सामने जो भी बोला जाता था वो आप  तुरंत याद कर लेते थे | नारायण का मन वैराग्य से भरा  हुआ था | नारायण की माँ रामदेवी नारायण की अवस्था देख-देख  कर बहुत चिंतित थी |

 उन्होने उनका विवाह कर देने का सोचा जिससे उनका ध्यान बदल जाये-गा तथा इस दिशा मे प्रयतन करने शुरू कर दिये विवाह की तयारी होने लगी, बारात लड़की वालो के घर 'आसन ' गौण मे पहुच गयी | पुरहोइत जी मंत्र पाठ करने लगे और पाठ के अंत मे "शुभम लग्नम सावधानं भव" सावधान शब्द पड़ते ही वह वहा से भाग खडे  हुई  | देखते ही देखते नारायण जी लापता हो गये, किसी प्रकार छुपते-छुपाते नासिक पहुचे और गोदावरी के तट पर पचवटी मे बनी एक गुफा मे बैठ कर समाधी लगा ली | नारायण वहा पर १२ वर्ष तक रहे | गोदावरी के पानी मे खडे होकर वह घंटो श्री राम का ध्यान करते | एक बार आपने १३ लाख बार पानी मे खडे होकर इस मंत्र का जाप किया, श्री राम जय राम जय जय राम मंत्र का जाप करने की समाप्ति पर ही, श्री राम साक्षात उनके सामने प्रकट हुई | वह हमेशा कहते थे जय जय रघुवीर  समर्थ | इसलिये लोग आपको समर्थ गुरु रामदास कहने लगे |

देश भर मे प्राय ६०० से भी अधिक मंदिरों का निर्माण करवाया | माघ की नवमी को वह ब्रह्मलीन हो गये | उन्होने कई ग्रंथो की रचना करी जिनके नाम है ---चोदह शतक ,जन्स्वभावा,पञ्च समाधी ,पुकाश मानस पूजा ,जुना राय बोध्ह राम गीत परन्तु इनके ग्रन्थ मन ६ शलोक मे मन को वश मे रखने के लिये अनेक शिक्षा प्रद उदहारण दिये गये है जैसे- अरे  मनन पूरे जीवन तुम इस शरीर की ही सेवा करते रहे हो और जब शरीर छूट गया तो तुम्हारा कही नामो निशान नहीं था | समर्थ गुरु रामदास जी ने बाल्मीकि की पूरी रामायण अपने हाथ से लिखी | यह पाण्डुलिपि आज भी धुबलिया के श्री एस एस देव के संग्रलाई मे सुरक्षित है | रामदास जी के हजारो शिष्यों छत्रपति शिवाजी और अम्बा जी उनकी हर प्रकार से सेवा करते और उनके वचनों को कलमबद्ध करते - एक सच्ची घटना ->

एक घनी व्यक्ति श्री अग्निहोत्री की मृत्यु हो गयी अग्निहोत्री जी की पत्नी ने सती होने का प्राण लिया था | अत वह समस्त अभुश्नो से सुसजित अपने पति की चिंता पर अपने को बलिदान करने जा रही थी | तभी एक संत उधर से गुजरे और बिना शव को देखी उस महिला के प्रदुम करने पर उसको आशीर्वाद दी डाला "अस्तापुत्र सोभागय्वती भव " उसने रोते-रोते संत को उधर शव की और देखने का संकेत पर संत ने पास की बह रही गोदावरी नदी से चुलू भर पानी लिया और ईश्वर से प्राथना करते हुई वह जल शव पर झिड़क दिया मुर्दे मे जान आ गयी और अग्निहोत्री जी उठ गये  | यह संत और कोई नहीं, शिवाजी के गुरु समर्थ स्वामी रामदास जी थे |

छत्रपति शिवाजी और रामदास स्वामी पहली बार १६७४ मे मिले शिवाजी ने रामदास स्वामी को अपना धार्मिक गुरु माना है|
समर्थ  गुरु रामदास जी ने अपना समस्त जीवन रास्ट्र को अर्पित कर दिया |

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