अटलजी की कविता : क्या खोया क्या पाया जग में

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अटलजी की कविता : क्या खोया क्या पाया जग में

अटलजी की कविता : क्या खोया क्या पाया जग में
Aug 16, 2018, 6:56 pm ISTLifestyle & HealthAazad Staff
Atalji
  Atalji

क्या खोया क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिक़ायत
यद्द्पि छला गया पग पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें
यादों की पोटली टटोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्द्पि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक
पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

जन्म मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहां कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा

अँधियारा आकाश असीमित
प्राणों के पंखों को तौलें
अपने ही मन से कुछ बोलें

-अटल बिहारी वाजपेयी

 

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