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आडवाणी ने ना सिर्फ पार्टी के चुनाव चिन्ह की कल्पना की थी बल्कि ये बात भी कम हो लोगों को पता होगी कि आपातकाल के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी की संयुक्त सरकार बनी थी उस वक्त उसमें जनसंघ के प्रतिनिधि के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे।आडवाणी को तभी ये बात महसूस होने लगी थी कि जनता पार्टी के कई नेताओं ने दिल से जनसंघ को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से भी अपनी आशंका जाहिर की और नई पार्टी बनाने का आग्रह किया। जाहिर तौर पर पूरी जिम्मेदारी आडवाणी पर आयी। फिर चुनाव चिह्न की बात आई और आडवाणी ने ही कमल का फूल चुना।
देश के सातवें उप-प्रधानमंत्री के तौर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में अपनी सेवाएं देने वाले लालकृष्ण आडवाणी वह भारतीय राजनेता हैं जिनका जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत में 8 नवंबर 1927 को कृष्णचंद डी आडवाणी और ज्ञानी देवी के घर हुआ था। 1998 से लेकर 2004 तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में गृहमंत्री थे। लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के सह-संस्थापक और वरिष्ठ राजनेता है जो 10वीं और 14वीं लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। आडवाणी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) के वालंटियर के तौर पर हुई थी। राजनीति के शिखर पर पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी को साल 2015 देश के दूसरे सबसे बड़े सिविलयन अवॉर्ड पदम विभूषण से सम्मानित किया गया।
Best wishes to Shri LK Advani Ji on his birthday. Advani Ji’s contribution towards India’s development is monumental. His ministerial tenures are applauded for futuristic decision making and people-friendly policies. His wisdom is admired across the political spectrum.
— Narendra Modi (@narendramodi) November 8, 2018
राम मंदिर आंदोलन के दौरान देश में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नेता होने और संघ परिवार का पूरा आशीर्वाद होने के बावजूद आडवाणी ने 1995 में वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार ऐलान करके सबको हैरानी में डाल दिया था। उस वक़्त आडवाणी खुद प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन आडवाणी ने कहा कि भाजपा में वाजपेयी से बड़ा नेता कोई नहीं हैं। पचास साल तक वे वाजपेयी के साथ नंबर दो बने रहे। पचास साल से ज़्यादा के राजनीतिक जीवन के बावजूद आडवाणी पर कोई दाग नहीं रहा
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