मोहिनी एकादशी व्रत और उसका महत्व

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मोहिनी एकादशी व्रत और उसका महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को राक्षसों से बचाया था। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत को करने की सलाह दी थी। 
May 14, 2019, 1:15 pm ISTFestivalsAazad Staff
Lord Vishnu
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मोहिनी एकादशी व्रत इस साल १५ मई यानी की बुधवार को पड़ रहा है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को बुद्धि की प्राप्ति होती है और व्यक्तित्व में निखार आता है  इतना ही नहीं उसकी लोकप्रियता भी बढ़ती है।

ऐसी पोराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था। भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार को देखकर दैत्य मोहित हो गए और अमृत के लिए आपस में लड़ाई करना बंद कर दिया।

मोहिनी एकादशी का महत्व

मोहिनी एकादशी का पौराणिक महत्व है। बताया जाता है कि माता सीता के वियोग से पीड़ित श्रीराम ने अपने दु:खों से मुक्ति पाने के लिए मोहिनी एकादशी व्रत किया था। इतना ही नहीं, युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिए पूरे विधि विधान से इस व्रत को किया था।

कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी नाम

मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृत पीने के लिए देवता और दानवों के बीच विवाद छिड़ गया तब भगवान विष्णु सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दानवों के बीच पहुंच गये। इनके रूप से मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया। इससे देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है।

ऐसे करें व्रत -
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद शुद्घ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें।

व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। वहीं शाम के दौरान पूजा सम्पन करने के बाद चाहें तो फलाहार का सेवन कर सकते हैं। रात में जागकर भगवान विषणु का भजन कीर्तन करें।

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