Monday, Nov 25, 2024 | Last Update : 06:39 AM IST
इस प्रमुख पर्व को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की याद में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद आखिरी संदेशवाहक थे जिन्हें खुद अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल द्वारा कुरान का सन्देश दिया था। इस लिए ये दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को समर्पित होता है।
इस दिन इस्लाम का सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान पढ़ा जाता है। इसके अलावा लोग मक्का मदीना और दरगाहों पर जाते हैं। जहां अल्लाह की इबादत करते है। ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन अल्लाह की इबादत से वे अल्ला के और करीब हो जाते हैं और उनपर अल्लाह की रहम होती है।
वैसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी को लेकर मनाने का अलग-अलग मत हैं। शिया और सुन्नी इस दिन को अलग अलग तरीके से मनाते है। कई स्थानों पर ईद-ए-मिलाद को पैगंबर के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है तो कहीं इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुन्नी समुदाय मनाता है जन्मदिन का जश्न
पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार, रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुआ था और कुरान के अनुसार, ईद-ए-मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है पैगंबर का जन्म दिवस। शिया समुदाय के लोग पैगंबर हजरत मुहम्मद के जन्म की खुशी में इस दिन का जश्न बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उनका मानना है कि इस दिन पैगंबर की शिक्षा को सुनने से जन्नत के द्वार खुलते हैं। इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात भर सभाएं की जाती हैं और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को सुना व समझा जाता है।
शिया समुदाय के लिए होता है मातम का दिन
उधर, सुन्नी समुदाय का इस पर्व को लेकर कुछ अलग ही मत है। इस समुदाय के अधिकांश लोगों का यह मानना है कि ये उनकी मौत का दिन है जिसके कारण वो पूरे महीने शोक मनाते हैं और ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के दिन को वे मातम के तौर पर मनाते हैं।