होली: कैसे हुई लट्ठमार होली की शुरुआत, जाने इससे जुड़ी पौराणिक कथा

Friday, Nov 22, 2024 | Last Update : 09:02 AM IST

होली: कैसे हुई लट्ठमार होली की शुरुआत, जाने इससे जुड़ी पौराणिक कथा

मथुरा में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन लट्ठमार होली खेली जाती है। लट्ठमार होली को नारी सशक्तीकरण का प्रतीक भी माना गया है।
Mar 16, 2019, 4:14 pm ISTFestivalsAazad Staff
Holi
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लट्ठमार होली ब्रज क्षेत्र का बहुत प्रसिद्ध त्योहार है। ब्रज में लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां की लट्ठमार होली देखने के लिए देश विदेश से कई लोग हर साल यहां आते हैं। ब्रज के बरसाना और नंदगांव में होली अनोखे अंदाज में खेली जाती है।

ब्रज में होली का पर्व डेढ़ माह से भी लंबे समय तक मनाया जाता है। यहां हर तीर्थस्थल की अपनी अलग परम्परा है और होली मनाने के तरीके भी एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं जिनमें बरसाना और नन्दगांव की लट्ठमार होली बिल्कुल ही अलग हैं।

लट्ठमार होली से जुड़ी कथा

लट्ठमार होली (Lathmar Holi) खेलने की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा के समय से हुई। मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाने होली खेलने पहुंच जाया करते थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की इसीलिए नंदगांव के युवकों की टोलियां कान्हा का और बरसाने की युवतियां राधा जी का प्रतिनिधित्व करती हैं। युवक जब रंगों की पिचकारियां लिए बरसाना आते हैं तो उनपर यहां की महिलायें उन पर खूब लाठियां बरसाती हैं।

पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और महिलाओं को रंगों से भिगोना भी होता है। विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं। इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली के बाद अगले दिन बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने उनके यहां पहुंचते हैं। इन गांवों के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। आपको बता दें, इस बार होली २१ मार्च को मनाई जा रही है. वहीं, होलिका दहन २० मार्च को किया जाएगा।

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