Saturday, Dec 28, 2024 | Last Update : 06:29 AM IST
भारत में दीपावली हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीवाली को 'दीपावली' भी कहते हैं। 'दीपावली' का अर्थ होता है - 'दीपों की माला या कड़ी'। दीपों से भरे और सुसज्जित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है। दीपावली कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है, दीवाली में लगभग सभी घर एवं रास्ते दीपक एवं प्रकाश से रोशन किये जाते हैं।
हिन्दू धर्म में इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की देवी महालक्ष्मीजी, विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है।
दीवाली का त्यौहार मनाने का प्रमुख कारण है यह है कि इस दिन श्री राम, अपनी पत्नी सीता एवं अपने भाई लक्ष्मण के साथ १४ वर्ष का वनवास बिताकर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने भगवान राम के स्वागत में दिये जलाकर प्रकाशोत्सव मनाया था। इसी कारण इसे 'प्रकाश के त्यौहार' के रूप में मनाते हैं।
भारत में दीपावली का त्यौहार सभी लोग बहुत ही उत्साह और ख़ुशी से मानते है तथा सभी एक दूसरे को बधाई देते है बच्चे खिलौने एवं पटाखे खरीदते हैं। सभी अपने दुकानों एवं मकानों की सफाई की जाती है एवं रंग पुताई इत्यादि की जाती है। रात्रि में लोग धन की देवी 'लक्ष्मी' को प्रसन करने के लिए पूजा करते हैं।
(1) हिंदू मान्यताओं में राम भक्तों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा रावण का वध कर अयोधया लौटे थे। भगवान राम के अयोध्या में वापस आने के उपलक्ष्य में दीप जलाकर महोत्सव मनाया था ।
(2) कृष्ण भक्तिधारा यह भी मानना है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने अपने घरो में घी के दीए जलाए और भगवान की जीत की ख़ुशी मनाई थी ।
(3) एक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।
(4)दीपावली का त्योहार का प्रारम्भ धनतेरस से ही आरम्भ हो जाता है,बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। इसी दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं। कुछ लोगो का यह भी मानना है कि कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं।
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी |
हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता |
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता |
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता |
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता|
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता |
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता|
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता |
उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता....ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता |
...तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता...