Sunday, Nov 24, 2024 | Last Update : 09:00 PM IST
बुद्ध पूर्णिमा वैशाख महीने में गौतम बुद्ध के जन्म दिन के उपलपक्ष्य में मनाई जाती हैं। गौतम बुद्धा का जन्म का नाम सिद्धार्थ गौतम था।
आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दूधर्म के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।
इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। सिद्धार्थ गृहत्याग के पश्चात सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहां के रीति- रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।
भगवान पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर तथा घरों व मंदिर में अगरवत्ती लगायी जाती हैं
बोधि वृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाएं जाते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा को अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुछ लोग पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है तथा गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।
दिल्ली संग्रहालय इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर निकालता है जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें।
बुद्ध पूर्णिमा के दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे।
जैसा की माना जाता हैं गौतम बुद्ध की मृत्यु बहुत ही अचानक हुई कुछ लोगो का यह भी मानना हैं कि लुम्बिनी , नेपाल को बुद्धा का जन्म का दिन माना जाता हैं बुद्धा की मृत्यु ८० साल की आयु में कुशी नगर उत्तर प्रदेश में हुई थी। ऐसा भी मानना हैं की इसी दिन गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई थी इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी।
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