HRDW द्वारा बनाई गई यह ५६ पन्नों की रिपोर्ट है। पिछले १५ दिनों में यह दूसरी बार है जब इस रिपोर्ट को पेश किया गया है। इस रिपोर्ट के द्वारा यह लोग रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में सारे संसार को बताना चाहते हैं।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा इन सब की जांच कराने के लिए भेजे गए दूतों में से लगभग ८० दूत मौत के घाट उतार दिए गए।
HRDW अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं कि मुसलमानों के साथ हो रहे इस दुर्व्यवहार को दूर करना बहुत जरुरी है और इसीलिए इस रिपोर्ट में लिखी गई बातों को गंभीरता से लेना चाहिए। वह कहते हैं कि वर्मा सरकार को संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टॉमस को जांच करने के लिए पूरी तरह से छूट दे देनी चाहिए। ताकि सच सामने आ सके।
जोनाह फिशर जोकि बीबीसी के संवाददाता है कहते हैं की बर्मा में जबसे भयानक हिंसा हुई है तब से बर्मा के संवेदनशील इलाकों में राहतकर्मियों और पत्रकारों के आवाजाही पर रोक लगा दी गई है और इसी के चलते असली जानकारी को जुटा पाना काफी मुश्किल हो चुका है।
हालांकि वर्मा इस बात से साफ इनकार करता है कि वर्मा के सुरक्षाकर्मियों ने रखा इन प्रांत में मानव अधिकार का हनन करते हुए रोहिंग्या मुसलमानों के साथ कुछ भी गलत किया है। बर्मा के राष्ट्रपति ने एक सलाहकार की रिपोर्ट में जवाब देते हुए कहा कि वर्मा की सरकार ने हिंसा से निपटने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करने की कोशिश की।
HRDW ने अपनी इस रिपोर्ट को बनाने से पहले न केवल बर्मा बल्कि उसके पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी लगभग ६० लोगों से बातचीत की और उसके बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया है। रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा बल के सैनिक हिंसा को रोकने में पूरी तरह से नाकामयाब हो गए थे और इसीलिए उन्होंने आम लोगों के घरों को तोड़ दिया और हजारों लोगों को बेघर कर दिया।
'बेबुनियाद आरोप'
HRDW एशिया के निर्देशक ब्रैड एड्म्स अपनी रिपोर्ट में जानकारी देते हुए कहा कि बर्मा के सुरक्षाकर्मी रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों को आपस में लड़ने से रोकने पर पूरी तरह से नाकामयाब थे और इसी के चलते उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक हिंसा भरा अभियान शुरु कर दिया।
ऐसा नहीं है कि एचआरडबल्यु ऐसी पहली रिपोर्ट है जो रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हो रही हिंसा की बात कर रही है। इससे पहले भी एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी अपनी रिपोर्ट में यही बात कही थी कि रोहिंग्या मुसलमानों के साथ नाइंसाफी की जा रही है। वर्मा की सरकार ने उस रिपोर्ट को भी पक्षतापूर्ण और बेबुनियाद बताया था।
इस साल जून के महीने में बौद्धों और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच संप्रदायिक दंगे शुरू हुए थे। जिसके बाद वर्मा की सरकार ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी। मई के महीने में यह हिंसा तब शुरू हुई जब मुसलमानों ने एक बौद्ध महिला के साथ बलात्कार किया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी। इसका जवाब देने के लिए बौद्धों ने भी मुसलमानों से भरी बस में आग लगा दी। उसके बाद तो जैसे हिंसा रुकने का नाम ही नहीं लिया। हिंसा लगातार बढ़ती गई और हजारों लोग अपने घर से बेघर हो गए।
रखाइन प्रांत में रह रहे बहुसंख्यक बौद्धों और अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों के बीच का तनाव बहुत सालों पुराना है। इस तनाव का अपना ही एक इतिहास है।लेकिन यह सब हिंसा होने के बाद वर्मा के राष्ट्रपति थिन सीन का कहना है कि इस समस्या का अब सिर्फ एक ही समाधान है कि रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाए या फिर उन्हें शरणार्थियों के कैंप में रखा जाए ताकि देश में शांति बनी रहे।