चुनाव आचार संहिता (आदर्श आचार संहिता/आचार संहिता) का मतलब है चुनाव आयोग के वे निर्देश जिनका पालन चुनाव खत्म होने तक हर पार्टी और उसके उम्मीदवार को करना होता है। अगर कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता तो चुनाव आयोग उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकता है, उसे चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है, इसके साथ ही उम्मीदवार के खिलाफ़ प्राथमिकी भी दर्ज की जा सकती है। और जाँच में दोषी पाए जाने पर उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।
चुनाव के दौरान आचार संहिता का महत्व -
सरकारी गाड़ी, सरकारी विमान या सरकारी बंगला का इस्तेमाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जा सकता है।
आचार संहिता लागू होने के बाद सरकारी घोषणाएं, लोकार्पण, शिलान्यास या भूमिपूजन के कार्यक्रम नहीं किए जा सकते हैं।
आचार संहिता लागू होने के दौरान किसी भी पार्टी, प्रत्याशी या समर्थकों को रैली या जुलूस निकालने या चुनावी सभा करने से पहले पुलिस से अनुमति लेना अनिवार्य होता है।
कोई भी राजनीतिक दल जाति या धर्म के आधार पर मतदाताओं से वोट नहीं मांग सकता है।
धार्मिक स्थानों का उपयोग चुनाव प्रचार के मंच के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।
मतदान के दिन और इसके २४ घंटे पहले किसी को शराब वितरित करना अपराध के दायरे में आता है।
चुनाव की घोषणा हो जाने से परिणामों की घोषणा तक सभाओं और वाहनों में लगने वाले लाउडस्पीकर के उपयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। इसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में सुबह ६ बजे से रात ११ बजे तक और शहरी क्षेत्र में सुबह ६ से रात १० बजे तक इनके उपयोग की अनुमति दी गई है।
बता दें कि इस साल आचार संहिता के दायरे में सोशल मीडिया है। इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों को नामांकन भरते समय अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी देनी होगी। बताया जा रहा है कि वे चुनाव प्रचार थमने के बाद मतदाताओं को फोन, एसएमएस या वॉट्सएप के जरिए अपने पक्ष में वोट करने को नहीं कह सकते।
आचार संहिता का पालन राजनीतिक दलों के साथ साथ मतदाताओं को भी करना चाहिए। नियमों के मुताबिक मतदान के दिन मतदाताओं को समय पर मतदान केंद्र पहुंच जाना चाहिए। वोटर स्लिप के अलावा वोटर आईडी कार्ड या कोई अन्य सरकारी पहचान पत्र साथ में रखना चाहिए। आचार संहिता के तहत यह उम्मीद की जाती है कि नागरिक खुद तो वोट करें ही, साथ ही अन्य नागरिकों को भी मतदान के लिए जागरूक करें।