जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तब तब कश्मीर और धारा ३७० अक्सर चर्चा का विषय बन जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि धारा ३७० आखिर है क्या ? आज हम इस लेख में इस विषय से जुड़ी कुछ जानकारी आपके साथ साझा करने जा रहे है ?
अनुच्छेद ३७० का इतिहास क्या है -
भारत को १५ अगस्त १९४७ में आजादी मिलने के बाद देश में कई ऐसी रियासते थी जो पूर्ण रुप से स्वतंत्र रहना चाहती थी। ऐसी ही एक रियासत जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह की भी थी। राजा हरी सिंह अपने रियासत को स्वतंत्र रखना चाहते थे। लेकिन २० अक्टूबर १९४७ को पाकिस्तान के समर्थन वाली आजाद कश्मीरी सेना ने पाकिस्तान के साथ मिल कर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और कश्मीर के कई हिस्से पर कब्जा कर लिया। ये देख राजा हरी सिंह ने जम्मू कश्मीर की रक्षा के लिए वहां के बड़े नेता शेख अब्दुल्ला की सहमती से भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के साथ मिल कर २६ अक्टूबर १९४७ भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के अस्थाई विलय की घोषणा कर दी और ?इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन? पर कश्मीर ने अपने हस्ताक्षर कर दिए।
इस नए समझौते के तहत जम्मू और कश्मीर ने भारत के साथ सिर्फ तीन विषयों - रक्षा, विदेश मामले, और संचार को भारत के हवाले कर दिया। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत सरकार ने वादा किया इस राज्य के लोग अपने स्वयं के संविधान सभा के माध्यम से राज्य के आतंरिक संविधान का निर्माण करेंगे। और जब तक राज्य की संविधान सभा शासन व्यवस्था और अधिकार क्षेत्र की सीमा का निर्धारण नहीं कर लेते है। तब तक भारत का संविधान राज्य के बारे में एक अंतरिम व्यवस्था प्रदान कर सकता है। इन नियमों के साथ अनुच्छेद ३७० को भारत के संविधान में शामिल किया गया।
आपको बता दें कि भारतीय संविधान का जो प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागु हुआ उसकी घोषणा राष्ट्रपति ने १९५० संविधान आदेश १९५० द्वारा जारी किया जिसमे प्रावधान था की संसद प्रतिरक्षा, विदेश कार्य तथा संचार के विषय में जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में कानून बना सकती है। धारा ३७० के अनुसार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा राज्य के संविधान का निर्माण करेगी और यह निश्चित करेगी की संघ की अधिकारिता किन क्षेत्रों में या विषयों पर होगी।
जाने क्या है धारा ३७० के अधिकार -
-जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा है।
-धारा ३५६ लागू नहीं, राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं।
-जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है ।
- धारा ३७० की वजह से ही पाकिस्तानियो को भी भारतीय नागरीकता मिल जाता है । इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।
-वित्तीय आपातकाल लगाने वाली धारा ३६० भी जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होती।
- जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल ६ वर्षों का होता है जबकी भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल ५ वर्ष का होता है ।
- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
- भारत की संसद जम्मू-कश्मीर में रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा कोई अन्य कानून नहीं बना सकती।
-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहरी से शादी करती है तो उसकी कश्मीर की नागरिकता छिन जाती है।
-जम्मू कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू - कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।