हमारे देश में महिलाओं को लेकर कई कानून बनाए गए है, लेकिन इसके बावजूद भी महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार कम होने का नाम नहीं ले रहे है। आज के इस दौर में जहां महिलाओं की सुरक्षा के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत है वहीं महिलाकों कों अपने सुरक्षा से जुड़े सख्त कानूनों को भी जानना जरुरी है। आज इसी संदर्भ में हम आपकों धारा 498ए के बारे में बताने जा रहे है। जो हर महिलाओं को जानना चाहिए।
क्या है धारा 498ए
498-ए का अर्थ दहेज निरोधक कानून से है। इसके तहत दहेज लेना कानून अपराध है। साथ ही यदि कोई विवाहित महिला पति व उसके परिवार के विरुद्ध मारपीट, अतिरिक्त दहेज मांगने आदि की एफआईआर थाने में कराती है और पुलिस उसकी एफआईआर आईपीसी की धारा 498ए के तहत दर्ज करती है तो उन लोगों पर मुकदमा चलाया जाता है। जिसके तहत दोषियों को कम से कम तीन साल व जुर्माने का प्रवाधान है।
बता दें कि दहेज निरोधक कानून के तहत दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर लड़का पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है।
दहेज निरोधक कानून को 1961 में रिफॉर्मेटिव कानून के तहत लाया गया था। हालांकि इसे आईपीसी की धारा 498-ए के तहत 1986 में शामिल किया गया। इस धारा का मुख्य उद्देश आय दिन महिलाओं के साथ ससुराल पक्ष में हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाना है।
क्या दहेज कानून में जमानत मिलती है -
वैसे तो ये गैर जमानतीय अपराध है। पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सात साल से कम सजा होने के कारण इसमें पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल जाती है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7 साल के पहले हुई है तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है।